गांधी जी का हिन्दुत्व और अस्पृश्यता
गांधी जी ‘हिन्दुत्व’ के बहुत बड़े आग्रही थे। हिन्दुत्व के प्रति उनकी श्रद्धा इतनी गहरी थी कि वे इसे अपने जीवन की अत्यंत अमूल्य निधि मानते थे। उनका मानना था - ‘‘मुझे अपने सनातनी हिन्दू होने पर गर्व है। यद्यपि मैं हिन्दू धर्मग्रन्थों का आचार्य नहीं हँू, मैं संस्कृत का विद्वान भी नहीं हूँ, लेकिन मैंने वेदों और उपनिषदों के अनुवाद पढ़े है। स्पष्ट है कि मैंने इनका गहन तथा विस्तृत अध्ययन नहीं किया है, ल ेकिन फिर भी मेरी हिन्दुत्व के प्रति दृढ़ आस्था है।’’1 गांधी जी इस बात से अत्यंत व्यथित थे कि हिन्दू धर्म में अनेक अच्छे विचार होने के बावजूद अस्पृश्यता की विषबेल इस विराट वृक्ष की जड़ों को लगातार खोखला कर रही है। उनका मत था कि यदि हम इस शाप को अपने चिन्तन से नहीं मिटाएंगे तो यह हिन्दुत्व को विनाश के पथ पर ले जा सकता है। वे अस्पृश्यता को हिन्दुत्व के माथे पर बहुत बड़ा कलंक मानते थे। इस सन्दर्भ में उनके बाल्यकाल का एक प्रसंग उद्धृत है - गांधी जी जब बारह वर्ष के थे, तब उनके जीवन में एक घटना घटी। अक्का नामक एक अस्पृश्य उनके घर शौचालय साफ करने आया करता था। घर के लोग उनसे उस अस्पृश्य को न छूने...