राम आदर्श के सुमेरु हैं, भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के जाज्वल्यमान प्रतीक हैं, मर्यादित आचरण के विग्रह हैं तथा धर्माचरण के संवाहक हैं| यही कारण है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पावन जीवनगाथा देशकाल का अतिक्रमण करते हुए देश देशान्तर तक युगों-युगों से व्याप्त होकर मानवता को यथेष्ट आचरण की सीख दे रही है| अस्तु, स्वाभाविक है कि राम कथा के विविध दृष्टान्तों का देश-विदेश के विचारकों एवं कवि-लेखकों पर भी प्रभाव पड़े| इंडोनेशिया, थाईलैंड, रूस, मॉरीशस, कंबोडिया, फिजी, सूरीनाम, श्रीलंका आदि देशों में राम कथा की व्याप्ति तथा उनके आदर्शों से प्रेरणा लेने का भाव राम को वैश्विक फलक पर भारतीय संस्कृति के प्रतीक के रूप में सुस्थापित करता है| स्पष्ट है कि राम का नाम राम में रमण का हेतु है क्योंकि राम नाम रूपी सागर में जाने के पश्चात बाहर निकलने की अपेक्षा तरने की भावना बलवती हो जाती है और इस प्रकार मनुष्य का मन राम में रमकर अतीन्द्रिय सुखों की प्राप्ति करता है| यदि भारतीय वाङ्मय में राम के स्वरूप का निदर्शन करें तो रामकथा की प्राचीनतम उपस्थिति ‘ऋग्वेद’ के दशम मण्डल के तृतीय...
Posts
Showing posts from January 21, 2024