वीरवर सरदार भगत सिंह की प्रशस्ति का अनुपमेय राग
मित्रवर संजय मिश्र 'रजोल' जी मेरे बाल्यकाल के अग्रज और मित्र हैं। विभिन्न साहित्यिक मंचों पर मैंने बचपन से उन्हें काव्य पाठ करते हुए देखा है और उनकी कविताओं से प्रभावित रहा हूं। विगत दिनों उन्होंने अपने प्रबन्ध काव्य 'क्रांतिवीर सरदार भगत सिंह' की भूमिका लिखने का अनुरोध किया तो मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि एक श्रेष्ठ कवि के कविता कौशल का मुझे जौहरी बनने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। इस अनुपमेय ग्रंथ की जो भूमिका मैंने 'वीरवर सरदार भगत सिंह की प्रशस्ति का अनुपमेय राग' शीर्षक से लिखी है, वह आप सभी पाठकों मित्रों के लिए प्रस्तुत है। आप स्वयं ऐसे काव्य श्रेष्ठि की काव्यात्मक उत्कृष्टता के कतिपय उदाहरण देख सकते हैं - वीरवर सरदार भगत सिंह की प्रशस्ति का अनुपमेय राग भारतीय काव्यशास्त्रीय आचार्यों ने काव्य के प्रयोजनों को स्पष्ट करते हुए समाज को सार्थक दिशा में अग्रसर करना काव्य का अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रयोजन माना है| गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में कविता के विषय में ‘कीरति भनिति भूति भलि सोई, सुरसरि सम सब कहँ हित होई’ कहकर कविता को माँ गंगा की तरह सभी के ...