वर्तमान समय में विश्व को गाँधी की ज़रूरत है
जब-जब समाज में हिंसा, पराधीनता और राजनातिक मूल्यों में कमी की बात की जाएगी, तब तब हमें गांधीजी की याद करनी ही होगी. चाहे नेल्सन मंडेला हों, या मार्टिन लूथर किंग जूनियर, आंग सान सू की हों या बराक ओबामा. शांति और समानता की चर्चा करने वाला प्रत्येक व्यक्ति गाँधी की चर्चा किये बगैर अपनी बात को पूर्ण नहीं बना सकता. यही कारण है कि आज आतंक से कराह रही मानवता को रह रहकर पीछे लौटना पड़ता है और गाँधी के आदर्शों की ओर प्रेरित करने हेतु लोगों का आह्वान करना पड़ता है. ऐसा क्या था उस लंगोटी वाले नंगे फकीर में, जिसने उसके जाने के आज 67 बरस बीतने के बावजूद उसे लोगों के दिलों में जीवित कर रखा है? वास्तव में यह गांधीजी की भारतीय मूल्यों में गहरी आस्था थी, जिसने उन्हें एक साधारण व्यक्ति से करिश्माई व्यक्ति में बदल दिया. डी जी तेंदुलकर ने बिहार में सन 1922 में बिहार में गाँधी जी को मिले अभूतपूर्व समर्थन की चर्चा करते हुए लिखा है, “ अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिले. बिहार के गाँव में जहाँ गाँधी और उनके साथी पटरी पर खड़ी ट्रेन में मौजूद थे, एक वृद्धा उनको ढूँढ़ते हुए आयी और बोली, महाराज, मेरी उम्र अब एक सौ चार...