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अम्बेडकर की अंतर्वेदना पुस्तक की समीक्षा

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डॉ राम भरोसे हरिद्वार में हिन्दी के प्राध्यापक हैं. आपने मेरी पुस्तक अम्बेडकर की अंतर्वेदना की समीक्षा लिखी है . पेश है समीक्षा आप मित्रों के लिए --- ***आजकल बाबा साहेब से सम्बंधित अति महत्वपूर्ण पुस्तक पढ़ रहा हूँ. जिसका शीर्षक है ‘अम्बेडकर की अंतर्वेदना’ और इसके लेखक द्वय हैं शेषराव चव्हाण जी व डॉ. पुनीत बिसारिया जी. इस पुस्तक की प्रति मेरे आग्रह पर स्वयं मेरे मित्र-लेखक डॉ. पुनीत जी ने उपलब्ध कराई. अभी इस पुस्तक का कुछ अंश पढ़ना शेष है. परन्तु जितना भी इस पुस्तक को पढ़ पाया हूँ यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं हो रही है कि अम्बेडकर को मानने और समझने वालों को यह पुस्तक अनिवार्य रूप से पढनी चाहिए. बल्कि निश्चित ही बौद्ध धर्म को भी काफी हद तक समझने में इस पुस्तक से मदद मिलेगी. अंतिम समय में बाबा साहेब की मन की व्यथा, छटपटाहट-पीड़ा के मुख्य कारण क्या रहे.? आखिर क्या कारण था कि अपने अंतिम समय में उन्हें कहना पड़ा “मैं अपने समाज के पढ़े-लिखे लोगों से सर्वाधिक निराश हूँ और अब मेरी आशा का केंद्र बिंदु अशिक्षित लोग हैं.’’ इन्ही सच्चाई और गहराइयों की पड़ताल करती है यह पुस्तक. इस सच को मानने में भी...