हिन्दी सिनेमा में गाँव और लोकजीवन
हिन्दी सिनेमा में गाँव और लोकजीवन डॉ. पुनीत बिसारिया सिनेमा अपनी सम्पूर्णता में जितना अधिक जनोन्मुखी माध्यम है, उतना कोई अन्य माध्यम नहीं है, कारण यह कि यह जनभावनाओं तक सीधे अपनी पैठ बना लेता है और मजे की बात यह कि अभिनयकर्त्ता दूर होकर भी दर्षक के बेहद करीब होते हैं, बषर्ते उनका अभिनय सहज और प्रभावषाली हो। दर्षक ऐसे पात्रों को अपने बीच पाता है और उनके द्वारा अभिनीत भावनाओं से एकाकार होकर तदनुरूप आचरण करने लगता है। हमारे पास ऐसे अनेक सकारात्मक एवं नकारात्मक उदाहरण मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि एक फिल्म विषेष ने एक व्यक्ति के जीवन को बदलकर रख दिया। महात्मा गाँधी के जीवन पर ‘सत्य हरिष्चन्द्र’ फिल्म का जो असर हुआ था, वह उनके सम्पूर्ण जीवन काल में उनके व्यक्तित्व को प्रभावित करता रहा था। उन्होंने इस फिल्म से ही प्रभावित होकर सत्य बोलने का संकल्प लिया था, जिसे उन्होंने आजीवन अपने आचरण में उतारा। ‘दो आँखें बारह हाथ’ तथा ‘जिस देष में गंगा बहती है’ फिल्में देखकर कई अपराधियों का हृदय परिवर्तन हो गया था और उन्होंने अपराध से तौबा कर ली थी। ऐसे ही कई फिल्मों के नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मि...