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Showing posts from October 14, 2015

कलिकथा वाया बाइपास के बहाने समाज की पड़ताल

यह लेख अलका सरावगी के उपन्यास कलि कथा वाया बायपास उपन्यास की संकरी कलकतिया गलियों से गुजरकर भारतीय समाज के परिवर्तनों की आहट को महसूसता है. जिस दौर में ‘कलि कथा वाया बाइपास’ लिखा गया, वह दौर भूमंडलीकरण की आहट के कोलाहल में डूबा हुआ था. उस दौर में हर बुद्धिजीवी अपने-अपने ढंग से इसको परिभाषित कर रहा था और इसके सामाजिक प्रभावों की पड़ताल कर रहा था. यह उपन्यास भी भूमंडलीकृत समाज में सामाजिक व्यवस्था से अजनबीपन की हद तक कटे हुए किशोर बाबू की कहानी है, जिनके दिल की बाइपास सर्जरी क्या हुई, उनका चीज़ों को देखने का नजरिया ही बदल गया. जो किशोर बाबू मध्यमवर्गीय मानसिकता के अनुरूप अनेक प्रकरणों को बाइपास कर जाने की मानसिकता रखते थे, दिल की सर्जरी के बाद बार-बार उन गलियों में चले जाते हैं, जिनसे वे कभी गुजरकर आये थे. उनकी यह यात्रा उन्हें अपने पुरखों के जीवन से 1 जनवरी सन 2000 तक की यात्रा पर ले जाती है, जिसमें प्रसंगानुसार इतिहास की घटनाएं भी चहलकदमी करती रहती हैं. यह कथा वस्तुतः डेढ़ सौ साल के रूढ़िवादी मारवाड़ी समाज की कथा ही नहीं है, वरन इसमें भारतीय समाज की विसंगतियों की जड़ें देखी जा सकती हैं. ...