आदिवासी समाज का सच
आदिवासी समाज वास्तव में एक ऐसा समाज है, जिसने अपनी परम्पराएं, संस्कार और रीति-रिवाज संरक्षित रखे है। हॉ यह बात सही है कि अपने जल, जंगल-जमीन में सिमटा यह समाज शैक्षिक आर्थिक रूप से पिछड़ा होने के कारण राष्ट्र की विकास यात्रा के लाभों से वंचित है। डॉ. रमणिका गुप्ता आदिवासियों के विषय में अपना अभिमत व्यक्त करते हुए लिखती हैं, ”यह सही है कि आदिवासी साहित्य अक्षर से वंचित रहा, इसलिए वह उसकी कल्पना और यथार्थ को लिखित रूप से न साहित्य में दर्ज कर पाया और न ही इतिहास में। हॉ लोकगीतों, किंवदन्तियों, लोककथाओं तथा मिथकों के माध्यम से उसकी गहरी पैठ है।“ यह सच है कि दलित तबका शिक्षा, विकास तथा धनार्जन के मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा गया, किन्तु ऐतिहासिक तथ्य यह है कि अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए पहला विद्रोह तिलका मांझी ने सन् 1824 में में उस समय किया था, जब उन्होंने अंग्रेज़ कमिश्नर क्लीवलैण्ड को तीर से मार गिराया था। सन् 1765 में खासी जनजाति ने अंग्रेज़ों के विरूद्ध विद्रोह किया था। सन् 1817 ई. में खानदेश आन्दोलन, सन् 1855 ई. में संथाल विद्रोह तथा सन् 1890 में बिरसा मुंडा का आन्दोलन अंग...