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प्रतिभा के ज्योतिपुंज शैलेन्द्र

 'कविराज शैलेन्द्र' की जयंती के अवसर पर प्रस्तुत है मेरा लेख 'प्रतिभा के ज्योति पुंज शैलेन्द्र ' जिसे मैंने डॉ इन्द्रजीत सिंह द्वारा सम्पादित पुस्तक 'धरती कहे पुकार के' हेतु लिखा था, किन्तु उक्त पुस्तक में पूरा लेख नहीं छप सका था| फेसबुक के मेरे मित्रों के लिए प्रस्तुत है यह अविकल लेख ~~ प्रतिभा के ज्योतिपुंज शैलेन्द्र गीतों  के  जादूगर  का   मैं  छंदों  से  तर्पण    करता    हूँ, सच    बतलाऊँ     तुम    प्रतिभा    के    ज्योतिपुंज    थे|  X      X      X      X जहाँ  कहीं  भी अंतर मन से, ऋतुओं  की सरगम बुनते थे, ताजे  कोमल  शब्दों  से, तुम  रेशम  की  जाली  बुनते थे| X      X      X      X प्रिय  भाई  शैलेन्द्र,  तुम्हारी  पंक्ति पंक्ति नभ में  लहराई, तिकड़म  अलग  रही  मुस्काती...