आखिर इस मर्ज की दवा क्या है ?
आखिर इस मर्ज की दवा क्या है ? विश्व युद्ध की मौतों और देशों के आपसी युद्धों को छोड़ दें तो इक्कीसवीं शताब्दी अब तक की सबसे रक्तरंजित शताब्दी होने जा रही है। हमने सोचा था कि पढ़-लिखकर हम कुछ अधिक मानवीय, अधिक सभ्य, अधिक उदार और अधिक विश्व नागरिक बनेंगे लेकिन बीते कुछ समय से देखा जा रहा है कि तथाकथित पढ़े-लिखे लोग अधिक कट्टर, अधिक धर्मांध और अधिक संख्या में आतंकी बन रहे हैं। आखिरकार कमी कहाँ है? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका उत्तर सम्पूर्ण मानवजाति को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए खोजना ही होगा। आइसिस का बकर अल बगदादी बगदाद यूनिवर्सिटी से पी-एच. डी. है, नक्सलवादियों के समर्थक कुछ दिग्भ्रमित प्रोफेसर और तथाकथित बुद्धिजीवी हैं, कश्मीर की हिंेसा को जायज ठहराने वाले भी कुछ तथाकथित पढ़े-लिखे प्रभु वर्ग के प्रशांत भूषण टाइप के लोग हैं। हाइड्रोजन बम के परीक्षण से समूची दुनिया की शान्ति को भंग करने वाला उत्तर कोरिया का बददिमाग तानाशाह किम जोंग उन भी काफी पढ़ा लिखा माना जाता है। दुनिया के किसी भी कोने में घटने वाली किसी भी घटना का संचार क्रान्ति के युग में बेहद गहरा और अचूक प्रभाव पड़ता है, राजन...