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सर्दी पर कुछ रचनाएं

 ऋतु परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इसी क्रम में शीत ऋतु ने अब अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया है। ऐसे में याद आते हैं शीत ऋतु वर्णन से जुड़ी साहित्यिक कविताएं एवं फिल्मी गीत, इनके कुछ अंश प्रस्तुत हैं~ जायसी के पद्मावत के पद्मावती समय से उद्धृत बारहमासा का पौष ऋतु वर्णन~~ पूस जाड़ थर थर तन काँपा। सुरुजु जाइ लंका दिशि चाँपा।। बिरह बाढ़ दारुन भा सीऊ। कँपि कँपि मरौं ,लेइ हरि जीऊ।। कंत कहाँ लागौं ओहि हियरे। पंथ अपार , सूझ नहिं नियरे।। सौर सपेती आवै जूड़ी। जानहु सेज हिवंचल बूड़ी।। चकई निसि बिछुरै दिन मिला हौं दिन राति बिरह कोकिला।। रैनि अकेलि साथ नहिं सखी। कैसे जियै बिछोही पंखी।। बिरह सचान भएउ तन जाड़ा। जियत खाइ औ मुये न छाँड़ा।। रकत ढुरा माँसू गरा , हाड़ भएउ सब संख। धनि सारस होइ ररि मुई ,पीऊ समेटहिं पंख।। ●● राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के साकेत के नवम सर्ग से~~ यदपि काल है काल अन्त में, उष्ण रहे चाहे वह शीत, आया सखि हेमन्त दया कर देख हमें सन्तप्त-सभीत। आगत का स्वागत समुचित है, पर क्या आँसू लेकर? प्रिय होते तो लेती उसको मैं घी-गुड़ दे देकर। पाक और पकवान रहें, पर गया स्वाद का अवसर बीत, ...