हिंदी विरोध के नाम पर देशद्रोह बर्दाश्त नहीं है
लगता है कि जहां जहां खुराफात होगी, वहां वहां श्रीमान कपिल सिब्बल महाशय अवश्य मौजूद होंगे। कल चेन्नई की थाउसैंड लाइट्स विधानसभा के डीएमके विधायक और आरम सैय विरुंबु ट्रस्ट के प्रतिनिधि एशिलन नागनाथन की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें शिक्षा और स्वास्थ्य को केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की समवर्ती सूची से हटाकर राज्यों की सूची में शामिल करने का अनुरोध किया गया है। वादियों, जिनमें परदे के पीछे से तमिलनाडु सरकार भी शामिल है और तमिलनाडु सरकार की ओर से सिब्बल महाशय का तर्क है कि आपातकाल के दौरान सन 1976 में उनकी ही पार्टी की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा किए गए 42वें संविधान संशोधन से पहले ये दोनों विषय राज्य की सूची में थे। उनका कहना है कि केंद्र को सिर्फ इन विषयों पर सहयोग करना चाहिए और भाषा, सेहत गुणवत्ता आदि विषय राज्यों पर ही छोड़ देने चाहिए। तमिलनाडु की धरती से हिंदी विरोध की यह प्रच्छन्न साजिश अत्यंत गंभीर है क्योंकि हिंदी के विरुद्ध खड़े होने के साथ साथ ये लोग देश की शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य के साथ भी भयंकर खिलवाड़ करके अपनी राजनीति को चमकाना चाह...