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कौन कहे? यह प्रेम हृदय की बहुत बड़ी उलझन है

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“ ‘उर्वशी’ पढ़ते-पढ़ते जब मैंने यह पंक्ति पढ़ी कि ‘उर्वशी अपने समय का सूर्य हूँ मैं’ तब एकदम ऐसा लगा कि दिनकर ने पुरुरवा के मुख से जो यह पंक्ति कहलाई है, वह पुरुरवा पर चाहे लागू होती हो या न होती हो, दिनकर पर लागू होती है. और ‘समय’ का अर्थ यहाँ अखिल समय मानना चाहिए. दिनकर अपने देश के ही नहीं, अपने समय के सूर्य कवि थे. यह तो हमारा दुर्भाग्य है कि हमारी भाषा एक अभिशप्त भाषा है. इसमें लिखने वाला अंतरराष्ट्रीय कदाचित ही हो पायेगा........हिन्दी का हर पाठक अपने मन में जानता है कि अगर दिनकर ठीक अनुवादित होकर देश-विदेश में पेश किये जाते तो पिछले पचास साल में उत्पन्न किसी भी विश्व कवि कहे जाने वाले कवि के मुकाबले में ऐसे छोटे तो न पड़ते. ” 1       उपर्युक्त पंक्तियाँ दिनकर के समकालीन कवि भवानीप्रसाद मिश्र की हैं. यदि एक समकालीन कवि उनके विषय में इतनी बड़ी प्रशंसा कर रहा है तो यह अनौचित्यपरक हो भी नहीं सकती. उर्वशी वास्तव में कामायनी का एक्सटेंशन है. कामायनी के नामकरण को काम से जोड़ने के बावजूद प्रसाद ‘काम मंगल से मंडित श्रेय, सर्ग इच्छा का है परिणाम’ कहकर जिसे अधूर...