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Showing posts from May, 2016

किन्नर विमर्श : समाज के परित्यक्त वर्ग की व्यथा कथा

किन्नर विमर्श : समाज के परित्यक्त वर्ग की व्यथा कथा             डॉ पुनीत बिसारिया जब कभी किसी के परिवार में कोई खुशी का अवसर होता है, तो हम देखते हैं कि एक लैंगिक दृष्टि से विवादित समाज के लोग जो प्रायः हिजड़े (अथवा वर्तमान में प्रचलित नाम किन्नर; हालाँकि किन्नर शब्द हिमाचल प्रदेश के किन्नौर निवासियों हेतु प्रयुक्त होता था, जिसे अब हिजड़ों के सन्दर्भ में व्यवहृत किया जाने लगा है) होते हैं, आ जाते हैं और बधाइयाँ गाकर, आशीर्वाद देकर कुछ रुपए लेकर विदा हो जाते हैं. इसके बाद हम भी अपनी सामान्य गतिविधियों में व्यस्त हो जाते हैं और दोबारा कभी इनके बारे में नहीं सोचते. हम कभी यह जानने का प्रयास नहीं करते कि ये किन्नर कौन हैं, कहाँ से आये हैं, इनकी समस्याएँ क्या हैं और वे कौन से कारण हैं, जिनकी वजह से इन्हें किन्नर बनकर एक प्रकार की भिक्षावृत्ति से जीवन-यापन करने को विवश होना पड़ता है.             किन्नर या हिजड़ों से अभिप्राय उन लोगों से है , जिनके जननांग पूरी तरह विकसि...

इक्कीसवीं शताब्दी में हिन्दी का भविष्य

नवें दशक के प्रारम्भ में उदारीकरण, निजीकरण तथा भूमंडलीकरण (एलपीजी) के आगमन के साथ ही समाजशास्त्रीय चिंतक हिन्दी का मर्सिया पढ़ने लगे थे किन्तु इसके विपरीत ये पिछले दो दशक हिन्दी की वैश्विक स्वीकृति का खुशनुमा माहौल लेकर आये हैं. करिश्माई बॉलीवुड का सिनेमा, विश्व भर में फैले प्रवासी भारतीयों का हिन्दी प्रेम, योग की वैश्विक स्वीकृति, भारतीय अध्यात्म एवं दर्शन के प्रति विदेशियों में बढ़ रहा अनुराग तथा दुनिया के अनेक देशों में सफलतापूर्वक आयोजित हुए विश्व हिन्दी सम्मेलनों ने विश्व का हिन्दी के प्रति ध्यान आकर्षित किया है और अब विदेशी राष्ट्राध्यक्ष भी हिंदीभाषियों तथा हिन्दी की अपने-अपने देशों में अपरिहार्यता को महसूस करने लगे हैं.यह अनायास नहीं कि ब्रिटेन के आम चुनाव को जीतने के लिए डेविड कैमरन को ‘सबका साथ, सबका विकास’ और ‘अबकी बार कैमरन सरकार’ जैसे विशुद्ध हिन्दी के नारे गढ़ने पड़ते हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति को भारतीय पर्वों को मनाने हेतु आगे आना पड़ता है और हिन्दी में भाषण देकर अपनी हिन्दी अनुरक्ति का परिचय देना पड़ता है. दुनिया के पाँचों महाद्वीपों के लगभग सभी प्रमुख राजनेताओं को भारत औ...