Posts

Showing posts from 2024

नवीन संकल्पनाओं और वैज्ञानिकता के पक्ष में मुखरित आवाज़ों के प्रबल प्रवक्ता आर्यभट्ट

 पिछले दिनों मैंने प्रताप सहगल जी से उनका नाटक अन्वेषक पढ़ने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्होंने इसकी एक प्रति मुझे फौरन भेज दी। सहगल जी समकालीन हिन्दी नाटककारों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं और अपने नाटकों के विषय और अन्तर्वस्तु की मौलिकता से हमें चौंकाते हैं।  इतिहास पर नाट्य लेखन हिन्दी साहित्य में नाटकों की शुरुआत से ही पाया जा रहा है और अन्वेषक इस श्रृंखला में अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराने में सफल सिध्द होगा ऐसा मेरा अभिमत है। अन्वेषक एक खगोलशास्त्री अथवा गणितज्ञ के रूप में आर्यभट्ट को प्रस्तुत ही नहीं करता वरन धार्मिक अंधविश्वासों के मकड़जाल से नवीन संकल्पनाओं और वैज्ञानिकता के पक्ष में मुखरित आवाज़ों के प्रबल प्रवक्ता के रूप में उन्हें हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है किन्तु कुछ प्रश्नों के उत्तर यह नाटक नहीं देता, जैसे- आर्यभटीय की लोकस्वीकृति कैसे संभव हुई, शून्य के अन्वेषण को आर्यभट्ट के ईर्ष्यालु विरोधियों ने स्वीकार कैसे किया होगा? दूसरी बात राष्ट्र से जुड़ी है। भारत में राष्ट्र और धर्म कभी एक दूसरे के विरोधी नहीं रहे। बल्कि चाणक्य, समर्थ गुरु रामदास, महामति प्राणनाथ आदि ने...

सिनेमा के पतन के कारण

 बीते कुछ वर्षों में हिन्दी सिनेमा का लगातार पराभव हो रहा है, जो हिन्दी और हिन्दी सिनेमा के भविष्य के लिए शुभ लक्षण नहीं है। दुखद किन्तु सत्य यह भी है कि हिन्दी सिनेमा के क्षरण  के लिए खुद हिन्दी सिनेमा ही उत्तरदायी है। मेरे विचार से हिन्दी सिनेमा के पतनोन्मुख होने के लिए निम्नांकित कारण हैं- 1. अच्छी और मौलिक कहानियों का अभाव होना। 2. भेड़चाल की प्रवृत्ति। 3. भाई भतीजावाद। 4. श्रेष्ठ कलाकारों को अवसर न देना। 5. पश्चिम की फिल्मों की फूहड़ नकल करना। 6. साहित्य से दूरी रखना। 7. अच्छे गीतकारों के स्थान पर कानफोडू बेसिरपैर के गीत लिखने वालों को प्रश्रय देना। 8. अगला भाग बनाने की होड़ में अंत के साथ खिलवाड़ करना।© प्रो.पुनीत बिसारिया 9. भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म को हेय दृष्टि से देखना। 10. ओवरसीज बिजनेस को प्रमुखता देना। 11. हिन्दी सिनेमा से हिन्दी को लगातार दूर करना। 12. श्रेष्ठ कलाकारों की अगली पीढ़ी तैयार न होने देना। 13. अत्यधिक अंग प्रदर्शन और गालियों को शामिल करना। 14. हाई सोसायटी और मल्टी प्लेक्स थिएटर के लिए फिल्म बनाने को प्रमुखता देना। 15. लगातार फ्लॉप हो रहे कलाकारों...
राम आदर्श के सुमेरु हैं, भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के जाज्वल्यमान प्रतीक हैं, मर्यादित आचरण के विग्रह हैं तथा धर्माचरण के संवाहक हैं| यही कारण है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पावन जीवनगाथा देशकाल का अतिक्रमण करते हुए देश देशान्तर तक युगों-युगों से व्याप्त होकर मानवता को यथेष्ट आचरण की सीख दे रही है| अस्तु, स्वाभाविक है कि राम कथा के विविध दृष्टान्तों का देश-विदेश के विचारकों एवं कवि-लेखकों पर भी प्रभाव पड़े| इंडोनेशिया, थाईलैंड, रूस, मॉरीशस, कंबोडिया, फिजी, सूरीनाम, श्रीलंका आदि देशों में राम कथा की व्याप्ति तथा उनके आदर्शों से प्रेरणा लेने का भाव राम को वैश्विक फलक पर भारतीय संस्कृति के प्रतीक के रूप में सुस्थापित करता है| स्पष्ट है कि राम का नाम राम में रमण का हेतु है क्योंकि राम नाम रूपी सागर में जाने के पश्चात बाहर निकलने की अपेक्षा तरने की भावना बलवती हो जाती है और इस प्रकार मनुष्य का मन राम में रमकर अतीन्द्रिय सुखों की प्राप्ति करता है|   यदि भारतीय वाङ्मय में राम के स्वरूप का निदर्शन करें तो रामकथा की प्राचीनतम उपस्थिति ‘ऋग्वेद’ के दशम मण्डल के तृतीय...

हिंदी सिनेमा, टीवी और ओटीटी में श्रीराम

 मित्रों,  हिंदी सिनेमा, टीवी और ओटीटी में श्रीराम  प्रो पुनीत बिसारिया  भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों, परंपराओं और संस्कारों में बल्कि हम भारतीयों के हृदय स्थल और रोम-रोम में श्रीराम विराजते हैं, फिर भी आम जन प्रायः यह मानता है कि सिनेमा जैसा अपेक्षाकृत आधुनिक माध्यम पूर्णतः पाश्चात्य रंग में रँगा हुआ है और भारतीय संस्कृति में बसने वाले श्रीराम की कथा मंदाकिनी का चित्रण प्रायः इसमें कम हुआ है और यदि हुआ भी है, तो ऐसी फिल्मों को सीमित अथवा अत्यल्प मात्रा में ही सफलता मिल पाई है, लेकिन यदि हम विगत 111 वर्षों के भारतीय सिनेमाई इतिहास, विशेषकर हिंदी सिनेमा की ओर देखें तो सच्चाई इसके ठीक विपरीत दिखाई पड़ती है| आइए, इसका विहंगावलोकन करते हैं|   भारतीय सिनेमा के प्रारंभ से पूर्व हिंदी नाटक मंचित हुआ करते थे, जिनमें आगा हश्र कश्मीरी (1879-1935) और नारायण प्रसाद बेताब (1872-1945) के पारसी नाटकों के अनुकरण पर लिखे गए भारतीय कथाओं पर आधारित नाटक प्रमुख हुआ करते थे| आगा हश्र कश्मीरी ने ‘सीता वनवास’, ‘भगीरथ गंगा’, ‘लव कुश’ और ‘श्रवण कुमार’ तथा नारायण ‘प्रसाद ‘बेताब’ ने ‘राम...