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Showing posts from July, 2016

इब तो वाकई सुल्तान से

पिछले कुछ सालों से खेल आधारित फिल्मों का लगातार हिंदी सिनेमा में चलन दिख रहा है। यह ट्रेंड लगान की सफलता से शुरू होकर सुल्तान तक लगातार जारी है। सुल्तान फ़िल्म की रिलीज़ की टाइमिंग बहुत अच्छी है क्योंकि अगले महीने से रियो ओलम्पिक शुरू हो रहे हैं और भारतीय कुश्ती की दावेदारी को यह फ़िल्म आगे बढ़ा सकती है। यह फ़िल्म कई दृष्टि से 2016 की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म कही जा सकती है। कुश्ती के अलावा हरियाणा में गिरते कन्या भ्रूण अनुपात की समस्या को उठाना, मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण, एक खिलाड़ी युगल के जीवन के झंझावात, प्रेमी के प्रेम का उत्ताप और प्रेम के कारण एक खिलंदड़ का गम्भीर खिलाड़ी में बदलना, एक भावुक पति, प्रेमी और पिता ये सब शेड्स दिखाने में सलमान पूरी तरह से सफल रहे हैं। इस फ़िल्म को देखते समय नायक के चरित्र के विकास के साथ मुझे गोस्वामी तुलसीदास और हीर की याद आ रही थी, जिसमें एक पत्नी की प्रताड़ना से आज भी स्मरणीय है तो दूसरे की प्रेम की कसमें आज भी खाई जाती हैं। फ़िल्म में अब्बास अली ज़फ़र का निर्देशन और विशाल शेखर का संगीत उत्कृष्ट है, फरहा का नृत्य निर्देशन भी अच्छा कहा जाना चाहिए। इस फ़िल्म की एडि...

इब तो वाकई सुल्तान से

पिछले कुछ सालों से खेल आधारित फिल्मों का लगातार हिंदी सिनेमा में चलन दिख रहा है। यह ट्रेंड लगान की सफलता से शुरू होकर सुल्तान तक लगातार जारी है। सुल्तान फ़िल्म की रिलीज़ की टाइमिंग बहुत अच्छी है क्योंकि अगले महीने से रियो ओलम्पिक शुरू हो रहे हैं और भारतीय कुश्ती की दावेदारी को यह फ़िल्म आगे बढ़ा सकती है। यह फ़िल्म कई दृष्टि से 2016 की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म कही जा सकती है। कुश्ती के अलावा हरियाणा में गिरते कन्या भ्रूण अनुपात की समस्या को उठाना, मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण, एक खिलाड़ी युगल के जीवन के झंझावात, प्रेमी के प्रेम का उत्ताप और प्रेम के कारण एक खिलंदड़ का गम्भीर खिलाड़ी में बदलना, एक भावुक पति, प्रेमी और पिता ये सब शेड्स दिखाने में सलमान पूरी तरह से सफल रहे हैं। इस फ़िल्म को देखते समय नायक के चरित्र के विकास के साथ मुझे गोस्वामी तुलसीदास और हीर की याद आ रही थी, जिसमें एक पत्नी की प्रताड़ना से आज भी स्मरणीय है तो दूसरे की प्रेम की कसमें आज भी खाई जाती हैं। फ़िल्म में अब्बास अली ज़फ़र का निर्देशन और विशाल शेखर का संगीत उत्कृष्ट है, फरहा का नृत्य निर्देशन भी अच्छा कहा जाना चाहिए। इस फ़िल्म की एडि...

आचार्य अभिनवगुप्त के प्रत्यभिज्ञा दर्शन की वर्तमान समय में प्रासंगिकता

कश्मीर चिरकाल से भारत का भाल होने के साथ-साथ भारत का ज्ञान चक्षु भी है. शारदा देश के नाम से विख्यात यह क्षेत्र शैव, बौद्ध, तन्त्र, मीमांसा, न्याय, वैशेषिक, सिद्ध, सूफी आदि परम्पराओं का क्रीड़ास्थल रहा है. मान्यता है कि कलिकाल में शैव दर्शन का लोप हो गया था, जिसे स्वयम भगवान शिव की प्रेरणा से दुर्वासा ऋषि ने पुनर्स्थापित किया और दुर्वासा ने अपने तीन मानस पुत्रों त्र्यम्बक, अमर्दक और श्रीनाथ को शिवसूत्र के तीन भेदों क्रमशः अभेदवाद, भेदवाद और भेदाभेद्वाद का ज्ञान दिया. शैव दर्शन के इस त्रिकदर्शन की परम्परा इनकी 15 पीढ़ियों तक चली और कालान्तर में वसुगुप्त ने स्पन्द्शास्त्र लिखा, जिसकी कालांतर में उनके शिष्य सोमानंद ने ईश्वर प्रत्यभिज्ञा सूत्र के माध्यम से विशद व्याख्या थी. आचार्य अभिनवगुप्त ने इसी प्रत्यभिज्ञा सूत्र को जन-जन तक पहुँचाया और श्रीमद्भागवद्गीता के कर्मयोग, जैन, बौद्ध तथा कुछ नास्तिक दार्शनिकों से गहन-विचार विमर्श के काल और समाज के परिप्रेक्ष्य में शैव दर्शन को नया आयाम दिया. आज से लगभग 1000 वर्ष पहले आचार्य अभिनवगुप्त ने अपनी नवोन्मेषशालिनी प्रतिभा से अनेक दार्शनिक मान...