इब तो वाकई सुल्तान से


पिछले कुछ सालों से खेल आधारित फिल्मों का लगातार हिंदी सिनेमा में चलन दिख रहा है। यह ट्रेंड लगान की सफलता से शुरू होकर सुल्तान तक लगातार जारी है। सुल्तान फ़िल्म की रिलीज़ की टाइमिंग बहुत अच्छी है क्योंकि अगले महीने से रियो ओलम्पिक शुरू हो रहे हैं और भारतीय कुश्ती की दावेदारी को यह फ़िल्म आगे बढ़ा सकती है।
यह फ़िल्म कई दृष्टि से 2016 की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म कही जा सकती है। कुश्ती के अलावा हरियाणा में गिरते कन्या भ्रूण अनुपात की समस्या को उठाना, मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण, एक खिलाड़ी युगल के जीवन के झंझावात, प्रेमी के प्रेम का उत्ताप और प्रेम के कारण एक खिलंदड़ का गम्भीर खिलाड़ी में बदलना, एक भावुक पति, प्रेमी और पिता ये सब शेड्स दिखाने में सलमान पूरी तरह से सफल रहे हैं।
इस फ़िल्म को देखते समय नायक के चरित्र के विकास के साथ मुझे गोस्वामी तुलसीदास और हीर की याद आ रही थी, जिसमें एक पत्नी की प्रताड़ना से आज भी स्मरणीय है तो दूसरे की प्रेम की कसमें आज भी खाई जाती हैं।
फ़िल्म में अब्बास अली ज़फ़र का निर्देशन और विशाल शेखर का संगीत उत्कृष्ट है, फरहा का नृत्य निर्देशन भी अच्छा कहा जाना चाहिए। इस फ़िल्म की एडिटिंग में मुझे कमी नज़र आई। यदि फ़िल्म की लम्बाई कम की जाती और कुछ लम्बे दृश्य छाँट दिए जाते तो फ़िल्म का प्रभाव और बढ़ सकता था। अनुष्का के अभिनय में गहराई है लेकिन रणदीप हुडा ने इस फ़िल्म में सबसे खराब अभिनय किया है। लेकिन चूँकि यह फ़िल्म पूरी तरह से सलमान की फ़िल्म है, इसलिये ये बातें अधिक मायने नहीं रखतीं। भाषाई दृष्टि से सलमान के संवादों में हरियाणवी टच कम मिला, इसे और अधिक देसी बनाया जा सकता था। 50 साल की उम्र में सलमान को ऐसी फाइट करते देखकर बस दांतों तले अंगुली ही दबाई जा सकती है। यशराज फिल्म्स ने अपने बैनर की प्रतिष्ठा के अनुरूप ही इस फ़िल्म का निर्माण किया है। वर्ष 2016 के हिंदी सिने जगत के इस सुल्तान को मेरी ओर से 5 में से 4 स्टार।

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