कलात्मक फिल्म है कला

 जिस दौर की फिल्मों में रंगों को बेशर्म बताया जा रहा हो, केवल अश्लीलता सफलता की कसौटी बनाई जा रही हो, पाश्चात्य संस्कृति के प्रति अंध अनुराग प्रदर्शित किया जा रहा हो, भारतीय शास्त्रीय संगीत कोमा में जा चुका हो, ओटीटी प्लेटफार्म अश्लीलता के संवाहक बनकर सामने आ रहे हों, तब नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित अन्विता दत्त की फिल्म कला कला के प्रति आशा जगाती है और बताती है कि भारत का सिनेमा भारतीयता और सुरीलेपन को नहीं भुला सकता।

कला फिल्म की कहानी आज़ादी से लगभग 10 वर्ष पूर्व की है, जिसमें स्त्री विमर्श की छौंक है, फिल्म जगत की क्रूर सच्चाइयां हैं, मां का सगी बेटी के प्रति अन्याय है, बेटी का सफलता प्राप्त करने के लिए किया गया वह कार्य है, जिसके लिए वह कभी खुद को माफ़ नहीं कर पाती। फिल्म के अनेक गीत रागों पर आधारित हैं, जो गर्म तपती हवा के बीच शीतल मन्द सुगंधित बयार की भांति हैं। बलमा घोड़े पे क्यों सवार है, फेरो न नज़रिया, बिखरने का मुझको शौक है बड़ा जैसे गीत बेहद खूबसूरत हैं और कबीर का निर्गुण उड़ जाएगा हंस अकेला तो कहानी से ऐसा घुल मिल गया है कि ऐसा लगता है मानो इस फिल्म के लिए ही लिखा गया हो। सिरीशा भगवतुला के गाए बलमा घोड़े पे क्यों सवार है ने तमिल की इस प्रतिभावान गायिका को हिंदी पट्टी के प्रशंसकों की फौज दे दी है। 

फिल्म में तृप्ति डिमरी, स्वस्तिका मुखर्जी, अमित सियाल, समीर कोचर और इरफान के बेटे बाबिल खान ने यादगार अभिनय किया है। संगीतकार अमित त्रिवेदी का संगीत हमें उसी दौर में ले जाने में सफल रहा है, जिस दौर की यह कहानी है। लेखिका निर्देशिका अन्विता दत्त ने फिल्म के परिवेश को बखूबी लिखा तथा निर्देशित किया है तो सिनेमेटोग्राफर सिद्धार्थ दीवान हिमाचल प्रदेश और बंगाल के प्राकृतिक सौंदर्य को उकेरने में सफल रहे हैं।

फिल्म की एक अन्य खूबसूरती प्रकाश के रंगों का बेहतरीन संयोजन है, इसके अतिरिक्त उस दौर में बन रहे हावड़ा ब्रिज को खलनायकीय स्वरूप में प्रदर्शित कर तथा बर्फ़ और धूप के बेहतरीन उपयोग से वातावरण की गहनता और कथावस्तु की परिस्थितियों को बेहतर ढंग से सृजित किया गया है। वस्त्र, आभूषण, गाडियां तथा घर की वस्तुओं आदि के चित्रण में भी विशेष सजगता बरती गई है ताकि वे उस दौर को सजीव कर सकें तथा चित्रण में कृत्रिमता न प्रतीत हो किंतु अनेक सावधानियों के बावजूद आवश्यकता से बेहद छोटे लैंप दिखाने से कहीं न कहीं यह कृत्रिमता झाँक ही गई है। 

फिर भी अगर आपको लगभग अस्सी बरस पुराना भारत देखना है, भारतीय फिल्म जगत को पहचानना है और फिल्मी दुनिया की कड़वी सच्चाई के साथ पुराने दौर के गीत संगीत को जीना है तो बरसों बाद आई यह बेहतरीन फिल्म अवश्य देखें।

© प्रो पुनीत बिसारिया

https://youtu.be/2g2sXGixh3w

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