मेरी प्रकाशित पुस्तक "वेदबुक से फेसबुक तक स्त्री" का अंश
यह लेख मेरी प्रकाशित पुस्तक "वेदबुक से फेसबुक तक स्त्री" का अंश है. कृपया पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया से उपकृत करें. वैदिक काल में सर्वत्र पत्नी को सम्मान प्राप्त नहीं था। वेदों में ऐसे अनेक प्रसंग आए हैं, जिनसे पति की पत्नी के प्रति हेय दृष्टि का आभास मिलता है। स्त्रियों के विष में ऋग्वेद में जो विवरण आए हैं,‘‘उनके अनुसार स्त्री का मन चंचल होता है, उसे नियंत्रण में रखना असम्भव सा है।1 उसकी बुद्धि भी छोटी होती है।2 वह अपवित्र होती है और उसका हृदय भेड़िये सा होता है।3 यदि विवाह के पश्चात् वधू के घर अपने पर परिवार के किसी सदस्य को, यहां तक कि मवेशियों को भी कुछ हो जाता था, तो उसका दोष आज की भांति ही नववधू के सिर मढ़ दिया जाता था। इस सन्दर्भ में इन्द्राणी और कृषाकपि का प्रसंग4 अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इन्द्र की अनुपस्थिति में वृक्षाकपि ने इन्द्राणी का शील भंग करने का प्रयास किया, जिसे इन्द्राणी में प्रयत्नपूर्वक असफल कर दिया। इन्द्र के आने पर इन्दाणी ने इन्द्र से वृक्षाकपि की शिकायत की, तो इन्द्र ने वृषाकपि पर क्रोध नहीं करते हुए अपितु यह कहकर वे इन्द्राणी को शान्त कर देते...