हिंदी फॉन्ट का मानकीकरण हो।
कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्ट फोन आदि नए नवेले संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग
तेज़ी से हो रहा है। गूगल ने हिंदी इनपुट टूल सेवा और बोलकर टाइप करने की सुविधा
देकर हिंदी में लिखने वालों की संख्या में इजाफा किया है लेकिन प्रिंट माध्यमों में
हिंदी फॉन्ट का मानकीकरण न होने के कारण अराजकता की स्थिति है। विन्डोज़ और लिनक्स
प्लेटफार्म पर हिंदी का न तो एक मानक की बोर्ड सेट है और न ही अक्षरों का कुंजीपटल
पर स्थान ही निर्धारित है। कनवर्टर का इस्तेमाल करने पर वर्तनी की अशुद्धियाँ हो
जाना आम बात है। विशेषकर श और ष की अशुद्धि रह जाना सामान्य घटना है जिसका खामयाजा
हम लेखकों को उठाना पड़ता है। यूनिकोड फॉन्ट के हिंदी में भी आ जाने से कुंजीपटल पर
अक्षर याद रखने की समस्या से कुछ हद तक निजात तो मिली है किन्तु यहाँ भी अराजकता
व्याप्त है। मंगल, चाणक्य आदि अनेक यूनिकोड फॉन्ट होने से और इनका सरकारी स्तर पर
मानकीकरण न किए जाने से यह समस्या रहती है कि कोई आलेख, शोधपत्र अथवा लेख किस फॉन्ट
में भेजा जाए। यही नहीं बल्कि अक्सर विन्डोज़ के नए वर्ज़न में लेख भेजने पर पुराने
वर्ज़न में नहीं खुल पाता। उदहारण के लिए यदि कोई मैटर डॉक्स फ़ाइल में भेज जाए तो वह
डॉक् में नहीं खुलता। इसके अतिरिक्त वर्ड से पेजमेकर में अथवा किसी अन्य माध्यम में
डाटा ट्रांसफर करने पर उसकी सेटिंग बिगड़ जाती है।
हिंदी को संचार माध्यमों हेतु आसान बनाने वाले वैज्ञानिकों को इन समस्याओं के बारे में विचार करना चाहिए और जिस प्रकार अंग्रेज़ी में टाइम्स न्यू रोमन और एरियल मानक फॉन्ट हैं वैसे ही हिंदी के लिए भी सम्पूर्ण विश्व हेतु मानक फॉन्ट तथा यूनिकोड निर्धारित करना चाहिए ताकि हिंदी के प्रशंसकों को हिंदी में लिखते तथा डाटा भेजते समय असुविधा न हो।
हिंदी को संचार माध्यमों हेतु आसान बनाने वाले वैज्ञानिकों को इन समस्याओं के बारे में विचार करना चाहिए और जिस प्रकार अंग्रेज़ी में टाइम्स न्यू रोमन और एरियल मानक फॉन्ट हैं वैसे ही हिंदी के लिए भी सम्पूर्ण विश्व हेतु मानक फॉन्ट तथा यूनिकोड निर्धारित करना चाहिए ताकि हिंदी के प्रशंसकों को हिंदी में लिखते तथा डाटा भेजते समय असुविधा न हो।
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