यादे फैज़ाबाद .
फैज़ का अरबी में अर्थ है विजेता और सफल लेकिन फैज़ाबाद शहर का दुर्भाग्य है कि न तो यह नाम के मुताबिक विजेता है और न ही सफल. अवध के पहले नवाब सआदत अली खां ने सन 1730 में जब यह शहर बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया था, तब शायद उन्होंने सोचा होगा कि ये शहर अपने नाम के अनुरूप सफल विजेताओं का शहर साबित होगा लेकिन वे खुद बहुत कम समय यहाँ रह सके.करनाल के युद्ध में नादिरशाह के खिलाफ मुगलों की ओर से लड़ते हुए वे 19 मार्च सन 1739 को मारे गए; अवध के दूसरे नवाब सफदरजंग के बाद तीसरे नवाब शुजाउद्दौला के जमाने में इस शहर ने भव्यता की पराकाष्ठा को छुआ. किला, गुलाबबाड़ी, मोतीमहल, बहू बेगम का मक़बरा जैसीअवध की शान कही जाने वाली इमारतें उसी के दौर में बनीं. उनके सलाहकार दराब अली खां ने सन 1816 में उनकी बेगम की मृत्यु के पश्चात् तीन लाख रूपए की लागत से उनका मक़बरा बनवाया जो अवध की स्थापत्य कला का श्रेष्ठ नमूना है. अवध के चौथे नवाब आसफुद्दौला ने यदि सन 1775 में अवध की राजधानी को फैज़ाबाद से लखनऊ न शिफ्ट किया होता तो कौन जाने आज उत्तर प्रदेश की राजधानी फैज़ाबाद होती.








खुशी की बात है कि आज भी स्वप्निल श्रीवास्तव, अनिल कुमार सिंह, विशाल श्रीवास्तव, शाह आलम जैसे अनेक साहित्य संस्कृति के प्रेमी लोग फैज़ाबाद की गरिमा को बचाकर रखे हुए हैं. पिछले दिनों मैं फैज़ाबाद में था. वहां के कुछ साहित्यिक आयोजनों में भाग लेने के बाद ऐसा लगा कि फैज़ाबाद अपनी अवध की तहजीब संजोकर रखने में कामयाब रहा है और अयोध्या से आने वाली मन्दिरों की घंटियों की मधुर आवाज़ों तथा फैज़ाबाद की मस्जिदों की अजान के स्वरों से नींद खोलने वाला यह शहर अपनी चमक खोने के बाद भी सजग और सचेत है.








चित्र विवरण
1- सआदत अली खां
2- सफदरजंग
3- शुजाउद्दौला
4- आसफुद्दौला
5- बहू बेगम का मकबरा का प्रवेश द्वार
6- मकबरे की छत की उत्कृष्ट कलाकारी
7-गुलाबबाड़ी
8- फैज़ाबाद में कवि अरुण देव के कविता पाठ में सहभागिता
9- कवि अरुण देव फैज़ाबाद में कविता पाठ करते हुए, साथ में है स्वप्निल श्रीवास्तव .
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