'कलाम को सलाम' कविता संग्रह में मेरे द्वारा लिखित दो शब्द
भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम का विगत 27 जुलाई सन 2015 को निधन हो गया था. उन्हें श्रद्धान्जलि देते हुए देश के 101 कवियों ने उन पर कविताएँ लिखी थीं, जिनका संग्रह मेरे तथा विनोद पासी हंसकमल के संयुक्त संपादन में 'कलाम को सलाम' शीर्षक से सुभांजलि प्रकाशन, कानपुर से प्रकाशित हो रहा है. यह संग्रह मकर संक्रांति 15 जनवरी सन 2016 तक आपके बीच होगा. पेश है, इस संग्रह में मेरे द्वारा लिखे गए दो शब्द
कविता दिल से उठते उच्छ्वासों का प्रकटीकरण है.
ये उच्छ्वास तभी उठते हैं, जब कोई घटना, विचार, अनुभव या परिस्थिति हमारे मन को
आंदोलित करती है. मन में उमड़-घुमड़कर ये उच्छ्वास बवंडर का रूप ले लेते हैं और कलम
से कागज़ पर उभरकर कविता का रूप ले लेते हैं. किसी कवि की कविता क्रौंच पक्षी के विलाप
(वाल्मीकि) से अभिव्यक्त हो सकती है, पत्नी रत्नावली की प्रताड़ना (तुलसीदास) से
जन्म ले सकती है, चांदनी रात में गंगा नदी में नौका विहार (सुमित्रानंदन पन्त) से
उत्थित हो सकती है, हिरोशिमा के भग्नावशेषों को निरखकर (अज्ञेय) आ सकती है या फिर किसी
निर्भया पर अत्याचार (विगत तीन वर्षों में अनेक कवियों ने इस पर कलम चलाई है) से इसका
आवेग फूट सकता है या किसी अपने प्रिय को खोने के दुःख में (निराला) जन्म ले सकती
है.
महान वैज्ञानिक,
उत्कृष्ट शिक्षक, लेखक, विचारक, दूरदृष्टा, जननायक, पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ
अबुल पाकिर जैनुलआबेदीन अब्दुल कलाम इस देश के नररत्नों की कोटि के अग्रपंक्ति के
महापुरुष थे. सन 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का सपना देखने वाले कलाम
साहब ने देश के युवाओं को जगती आँखों से सपने देखने की प्रेरणा दी और अपने
व्याख्यानों, लेखों के माध्यम से उनमें देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज़्बा पैदा
किया. उनके निर्देशन में चले प्रक्षेप्यास्त्र विकास कार्यक्रम ने देश को रक्षा
क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी| देश के ग्यारहवें
राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने करोड़ों भारतीयों को यह अहसास कराया कि देश के
सर्वोच्च पद पर उनका अपना ही कोई बैठा हुआ है. बेहद सरल, सभी को सहज उपलब्ध हो
जाने के स्वभाव और बच्चों, युवाओं तथा ज़रुरतमंदों के लिए सदैव सोचने का उनका अंदाज़
भारतवासियों के मन में गौरव की भावना भरता रहा. उनकी देशवासियों के प्रति असीम
समर्पण की भावना और विज्ञान को आम इंसान से जोड़ने की तीव्र स्पृहा को इस उदाहरण से
समझा जा सकता है. राष्ट्रपति पद पर रहते हुए जब एक बार वे इसरो की प्रयोगशाला में
गए तो उन्होंने राकेट प्रौद्योगिकी में इस्तेमाल होने वाले एक अत्यंत हल्के
धात्विक तत्व को देखकर सुझाव दिया कि विकलांग लोग जिन कृत्रिम हाथों-पैरों का
इस्तेमाल करते हैं, वे अत्यंत भारी होने के कारण स्वयं अपने आप में उन निःशक्त
लोगों के लिए बोझ बन जाते हैं तो क्यों न इस हल्के धात्विक तत्व का प्रयोग कृत्रिम
अंगों के निर्माण में किया जाए. आज इसी तत्व से बने कृत्रिम अंगों ने लाखों
निःशक्त लोगों को सामान्य जीवन जीने में मदद करने का काम किया है. इसी प्रकार गूगल
अर्थ से देश की सुरक्षा के क्षेत्र में आने वाले खतरों की ओर सबसे पहले उन्होंने
ही ध्यान आकृष्ट किया था. राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद उनकी एक ही इच्छा थी
कि विद्यार्थियों को पढ़ाने के अपने पसंदीदा काम पर वे पुनः वापस लौटना चाहेंगे और
अपने जीवन की अंतिम सांस तक उन्होंने अपने इस काम को पूरा किया. 27 जुलाई सन 2015 की
शाम के उस मनहूस क्षण को जब वे भारतीय प्रबन्धन संस्थान, शिलांग में रहने योग्य
ग्रह विषय पर व्याख्यान दे रहे थे, वहीं उन्हें ज़बरदस्त दिल का दौरा पड़ा और शाम
सात बजकर पैंतालिस मिनट पर वे हमसे हमेशा-हमेशा के लिए विदा हो गए. मछुआरों को
किराए पर नाव देने वाले परिवार से देश के प्रथम नागरिक के पद तक पहुँचने तक की
उनकी जीवन संघर्ष यात्रा के बीच में एक समाचारपत्र वितरित करने वाले हॉकर, वैज्ञानिक,
शिक्षक, लेखक, कवि, संगीतज्ञ, विचारक की सीढियां आयीं, जिनसे होकर वे राष्ट्रपति
पद तक पहुंचे और देश को वह राष्ट्रपति मिला जो वास्तव में ‘जनता का राष्ट्रपति’
था. उनके व्यक्तित्व के आयामों को किसी एक पहलू में बाँध सकना उनकी प्रतिभा के
प्रति अन्याय होगा. एक जन्म में इतने सारे कार्यों को अंजाम दे पाना सबके बस की
बात नहीं होती. उनके वैज्ञानिक पक्ष को देखें तो वे एक साथ रॉकेट वैज्ञानिक,
परमाणु वैज्ञानिक, मिसाइल मैन, वैमानिकी इंजीनियर, अन्तरिक्ष वैज्ञानिक, भू
वैज्ञानिक और प्रबन्धन विशेषज्ञ हैं.शिक्षक हैं तो वे छोटे-छोटे बच्चों के प्रेरणा
स्रोत ‘कलाम चाचा’ हैं, युवाओं को सफलता के सूत्र बताने वाले हैं, वैज्ञानिकों को जटिल
वैज्ञानिक प्रविधियों में निष्णात करने वाले हैं और आम जनता को सरल भाषा में
विज्ञान का ज्ञान देने वाले शिक्षक हैं. लेखक हैं तो डेवलपमेंट्स इन फ्लूइड
मैकेनिक्स एंड स्पेस टेक्नोलॉजी’, ‘विंग्स ऑफ़ फायर’, ‘इण्डिया 2020- ए विज़न फॉर द
न्यू मिलीनियम’, ‘माय जर्नी’, ‘इग्नाइटेड माइंडस- अनलीशिंग द पॉवर विद इन
इण्डिया’, ‘द ल्युमिनस स्पार्क्स’, ‘मिशन इण्डिया’, इन्सपायरिंग थॉट्स’,
‘इन्डोमिटेबल स्पिरिट’, एनविज़निंग एन एमपॉवर्ड नेशन’, ‘यू आर बोर्न टू ब्लॉसम’, ‘टर्निंग
पॉइंट्स: ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज़’, ‘टारगेट थ्री बिलियन’, ‘ए मैनिफेस्टो फॉर चेंज:
ए सीक्वल टू इण्डिया 2020’. ‘फोर्ज योर फ्यूचर: कैंडिड , फोर्थराइट, इन्सपायरिंग’,
‘रीइगनाइटेड: साइंटिफिक पाथवेज़ तो ए ब्राइटर फ्यूचर’, ट्रांसेंडेंस: माय
स्पिरिचुअल एक्सपीरिएन्सेज़ विद प्रमुख स्वामीजी’, ‘एडवांटेज इण्डिया: फ्रॉम चैलेन्ज
तो अपारचुनिटी’ जैसी प्रेरणादायक पुस्तकों के माध्यम से विभिन्न विषयों पर अपनी
लेखनी चलाकर मंत्रमुग्ध करते हैं. संगीतज्ञ हैं तो एक कुशल वीणावादक है और साथ ही
कर्णाटक संगीत के जानकार हैं. कवी हैं तो उनकी कविताएँ पाठक-श्रोता के सीधे
अंतस्तल में उतरती हैं. एक विचारक के रूप में उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ
उनके सर्वधर्म समभाव की भावना की चर्चा करना यहाँ अप्रासंगिक न होगा. देश को
सांस्कृतिक दृष्टि से एकता के सूत्र में बंधने के उद्देश्य से राष्ट्रपति पद पर रहते
हुए उन्होंने अनेक कदम उठाए. 25 जुलाई सन 2002 को राष्ट्रपति का पदभार सँभालने के
तुरंत बाद शाम को उन्होंने राष्ट्रपति भवन में एक सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन
किया, जिसमें रामेश्वरम मन्दिर के पुजारी, रामेश्वरम मन्दिर के मौलवी, सेंट जोसेफ़
कॉलेज के पादरी और कुछ अन्य धार्मिक नेतागण सम्मिलित हुए. राष्ट्रपति पद पर एक
वर्ष पूर्ण करने के बाद दिए गए व्याख्यान में उन्होंने कहा था, ‘‘बीते एक साल के दौरान मैं विभिन्न
धर्मों के अनेक अध्यात्मिक नेताओं से मिला हूँ. मैं उनके साथ मिलकर हमारे देश की
विविधता से भरी विचारधारा में एकता स्थापित करने का प्रयास करना चाहूँगा.” स्वामीनारायण सम्प्रदाय के गुरु प्रमुख
स्वामी जी से उनकी पहली मुलाकात 30 जून 2001 को हुई थी. उनसे मिलकर वे उनकी सरलता
तथा अध्यात्मिक विचारधारा से अत्यंत प्रभावित हुए थे. जब सितम्बर सन 2002 में
गांधीनगर स्थित अक्षरधाम मन्दिर पर आतंकवादियों ने हमला किया तो वे यह जानकर
आश्चर्यचकित गए कि प्रमुख स्वामीजी ने आतंकवादियों को न सिर्फ क्षमा कर दिया,
अपितु मृतकों के साथ आतंकवादियों के शवों पर भी पवित्र जल छिड़ककर उनकी मुक्ति की
कामना की. इससे प्रभावित होकर उन्होंने स्वामीजी से आठ बार मुलाकात की और उनके
विचारों से प्रभावित होकर अरुण तिवारी के साथ मिलकर ट्रांसेंडेंस: माय स्पिरिचुअल एक्सपीरिएन्सेज़ विद
प्रमुख स्वामीजी’ शीर्षक से एक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने स्वामीजी के साथ
बिताए पलों एवं उनके विचारों के उन पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन
किया है. स्वामीजी के विषय में इस पुस्तक में एक स्थान पर उन्होंने लिखा है, “प्रमुख स्वामीजी ने एक प्रकार से मुझे पूरी तरह
बदलकर रख दिया है. मेरे जीवन में वे मेरी अध्यात्मिक उन्नति के संवाहक बने हैं. अब
मुझे अध्यामिक ऊर्ध्वगमन के लिए किसी अन्य की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अब मैं समग्रता
की अंतिम अवस्था तक पहुँच गया हूँ.”
15 नवम्बर, सन 2011 को उन्होंने देश से
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए ‘मैं क्या दे सकता हूँ’ ( व्हाट कैन आय गिव) आन्दोलन
शुरू किया. इस आन्दोलन का उद्देश्य युवाओं को ‘हड़पने’ की जगह ‘देने’ हेतु
प्रोत्साहित करना था. यह आन्दोलन देश के प्रति प्रेम की भावना विकसित करने, समाज
हेतु कुछ सार्थक योगदान देने और निःस्वार्थ भाव से समाज की सेवा करने हेतु
युवावर्ग को प्रेरित करने हेतु आरम्भ किया गया था.
श्रीमद्भागवतगीता और कुरान के प्रति सामान रूप से
सम्मान व्यक्त करने वाले और इन दोनों महान ग्रंथों के आदर्शों को अपने जीवन में
उतारने वाले कलाम साहब 27 जुलाई सन 2015 को यह नश्वर देह छोड़कर सदा-सर्वदा के लिए
हमसे विदा हो गए. जाते समय उनके पास संचित पूंजी के रूप में कुछ जोड़ी कपड़े, एक
वीणा और कुछ किताबें मात्र थीं. उनके द्वारा लिखी गयी किताबों से प्राप्त होने
वाली रॉयल्टी का एक-एक रुपया वे मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी को दान कर दिया करते थे. 30 जुलाई
सन 2015 को उनकी इच्छा के अनुसार रामेश्वरम के पी करुम्बु मैदान में उनका अंतिम
संस्कार किया गया. उनके महान गुणों के कारण देश के प्रत्येक नागरिक ने अपने देश के
इस सपूत के निधन पर गहरे शोक का अनुभव किया. लोगों ने ऐसा महसूस किया मानो उनका
कोई बेहद अजीज़ उन्हें छोड़कर चला गया हो. कवि भी पीछे नहीं रहे. उन्होंने भी अपने
काव्यात्मक उद्गारों के माध्यम से शोकगीत रचकर अपने प्यारे भारत रत्न कलाम साहब को
भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी. यह कविता संग्रह हिन्दी के कवियों, गीतकारों द्वारा कलाम
साहब के निधन अर्थात 27 जुलाई सन 2015 से उनकी अंत्येष्टि अर्थात 30 जुलाई सन 2015
के मध्य लिखी गयी आशु कविताओं का संकलन है, जो संभवतः कलाम साहब पर रचित हिन्दी का
एकमात्र शोकगीत संग्रह है. मुझे आशा ही नहीं, वरन पूर्ण विश्वास है कि इस कविता
संग्रह के माध्यम से सुधी पाठकवृन्द कलाम साहब को अपनी स्मृतियों में सदा सर्वदा
के लिए सुरक्षित रख सकेंगे. आपकी प्रतिक्रियाओं की हमें प्रतीक्षा रहेगी.
डॉ पुनीत बिसारिया
02 जनवरी, सन 2016
पुनीत जी,आपके पुनीत कार्य के लिये कोटिशः धन्यबाद और साधुवाद।जो आपने एक महान राष्ट्रप्रेमी और सहज सरल व्यतित्व के धनी कलाम जी पर यह कालजयी संकलन किया।
ReplyDeleteआभार आदरणीय मिश्र जी।
Deleteबहुत सही शब्द दिए पुनीत जी ने कलाम को सलाम ।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय अग्रज महेन्द्र भीष्म जी।
Deleteडाॅ0 बिसारिया जी । आपने इन "दो शब्द" के लिए जिस भाषा शैली का सहारा लिया है वह अनुपम, अनुकरणीय है और जिस व्यक्तित्व के लिए लिया वह मिसाइल मैन सत्य अर्थ में मिसाल तो है ही ।
ReplyDelete"कलाम को सही अर्थों का सलाम" ।
सहावेन्द्र प्रताप सिंह जी की प्रतिक्रिया 🙏
सुन्दर और सामायिक संग्रह । प्रतीक्षा है कब हाथ लगे। डॉ कलाम जैसे सरल-सहज, त्यागी और विद्वान देशभक्त को आने वाली पीढियां हमेशा याद रखेगी जो भारत का सच्चे अर्थो में प्रतिनिधित्व करते हैं। बधाई पुनीत भाई
ReplyDeleteआभार डॉ द्विवेदी जी
Deleteयुगपुरुष के कृतित्व और व्यक्तित्व का सारगर्भित चित्रण अद्वितीय उपमाओं के संगुम्फन के साथ" दो शब्दों" में ही जब इतनी सरलता और सजगता से समेटा गया है तब समग्र संग्रह कितना अलंकृत और अद्भुत होगा ? इसके संकेत अभी से मिल रहे है । संग्रह की प्रबल प्रतीक्षा में आपका नीरज द्विवेदी
ReplyDeleteधन्यवाद प्रिय नीरज जी
Delete" कलाम को सलाम" शायद भारत का ऐसा पहला प्रयास है जिसमे हम लोगो नें फेसबुक के माध्यम से आम भारतीय पाठको की भावनाओं को संकलित करके जनता के सर्वोच्य पद पर बैठने वाले "जनता के राष्ट्रपति" को श्रद्धांजलि के रूप में प्रस्तुत किया है. उनके आकस्मिक निधन पर आम आदमी नें कुछ न कुछ लिख कर उनकी महान आत्मा को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी है. इनमें से अधिकांश लोगो को तो यह मालूम भी नहीं होगा, की दुःख की उस घडी में लिखे इनके उदगार कभी किसी पुस्तक का हिस्सा बनेगे
ReplyDeleteडॉ पुनीत बिसारिया जी २१वी शताब्दी के हिंदी के अग्रणीय लेखक है, उनके बारे में, या उनकी पुनीत लेखनी के बारे में, कुछ लिखना सूर्य को दिखाने जैसा बचकाना प्रयास है. मुझे इस बात ओर गर्व है की उनकी यह पुस्तक डॉ कलाम पर छपी या आगे छपने वाली पुस्तको में मील का पत्थर बनेगी.
आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य है लेकिन आपने कुछ अधिक ही प्रशंसा कर दी। मैं इतनी प्रशंसा के योग्य नहीं।
DeleteDr. Puneet Bisaria jee, is yug ke mahaan Hindi lekhko mein se ek hai, unka hindi ke prati pyar aur unki paini kalam iss baat ka saboot hai. Jitni teji se aur jitne vibhinn subjects par,wah pustako, likh, vivran ityadi likh rahe hai, unti teji se to hum aam log sochna to door, padh bhee nahi paten. Dr. Kalam ko shradhjali, ek mahatpoorn pustak hogi, isme mujhe leshmatr bhee sanchok nahi hai. wo janta ke rashtrapati they, aur janta unke nidhan par sacche dil se royee hai, yeh kavitayen yahi bayan karti hai.
ReplyDeleteAney wale varsho mein log yehi kahenge, hamne Gandhi ko to nahi dekha, par hum us yug se hai, jisne mahaan insaan Kalaam Saheb ko dekha hai.
आदरणीय पुनीत जी
ReplyDeleteमाननीय कलाम साहब का व्यक्तित्व ही ऐसा हैं की,उनके विचार,उनकी सीख,,समाज, देश बल्कि सम्पूर्ण मानव जाती के लिए उनका समर्पण,निरंतर कुछ अच्छा,जनहितार्थ करनें की ललक नें उन्हें एक अविस्मर्णीय ग्रन्थ बना दिया हैं .जिसका हर पृष्ठ केवल देना जानता हैं.
ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व के बारे में " दो -शब्द " लिखना मतलब आपके लिए निश्चित ही बहुत बड़ी चुनौती रही होगी.लेकिन जैसा की उनका व्यक्तित्व है (आज भी वे सोच हैं हमारे लिए .और सोच अमर रहती हैं)लोगों नें उन्हें आम जनमानस का ही एक चेहरा माना गया .और अपनें जैसे लगनें वाले लेकिन दिव्यआत्मा डॉ कलाम साहब के बारे में आपनें भी उतनी ही खूबसूरती से लिखा हैं.साधुवाद आपको उनके जीवनपरिचय को सरल सहज भाषा में सांझा करनें हेतु.
चूँकि वो हमारे अपनें हैं इसलिए मैनें अपनीं बौद्धिक हैसियत के बाहर जाकर,इस पुस्तक में उनके बारे में चंद पंक्तियाँ लिखनें का दुस्साहस किया हैं. शब्दों से कहीं ज्यादा भावनाएं महत्त्व रखती हैं यही सोच कर उन्हें श्रद्धांजली,आदरांजली .
जय हिन्द .
रश्मि प्रणय वागले जी इंदौर की प्रतिक्रिया
सरल भाषा, सहज शैली मे लिखित संक्षिप्त पर सार्गर्भित परिचय - सचमुच मे दो शब्द. बधाई. पुस्तक कि प्रतीक्षा रहेगी.
ReplyDeleteआभार आदरणीया मैडम।
Deleteआप ने अंग्रेजी शब्द 'टू ' के स्थान पर 'तो' का प्रयोग किया है। इसका कोई विशेष कारण?
ReplyDeleteकोई कारण नहीं है। यह यूनिकोड से कॉपी करते हुए गलती आ गई है।
Deleteपुनीत जी,
ReplyDeleteकलाम साहब के विराट व्यक्तित्व को कम शब्दों में व्यक्त करना किसी कौशल से कम नहीं है,आपने उस कौशल का परिचय देते हुए कलाम साहब के व्यक्तिव,उनकी सरलता,सहजता,उनके उदात्त करुणापूर्ण मन,उनकी संवेदना,आध्यात्मिकता का चित्र प्रस्तुत किया है।आप को बधाई।
आभार आदरणीय शिवजी श्रीवास्तव जी।
ReplyDeleteIS NEK UR SARTHAK KAARY KE LIYE AAPKO SADHUWAAD
ReplyDelete