हिन्दी सिनेमा में चित्रित नए सरोकार

पुनीत बिसारिया 

नयी शताब्दी का सिनेमा अपनी नवोन्मेषी दृष्टि, मौलिक संकल्पना और कुछ नये सवाल लेकर हमारे बीच उपस्थित है. नयी शताब्दी ने सिनेमा को नयी ऊर्जा, नये विषय, नये संस्कार दिये हैं. नयी सहस्राब्दि से पूर्व तक हिन्दी सिनेमा कुछ ख़ास किस्म के फॉर्मूलों तक केन्द्रित रहा करता था और वे फ़ॉर्मूले ही फिल्मों की सफलता की गारंटी हुआ करते थे, जैसे- प्रेम या रोमांस, जो कमोबेश आज भी किसी फिल्म को सफल बनाने की क्षमता रखता है अथवा नायक-खलनायक भिड़ंत या फिर प्रेम त्रिकोण या फिर भाइयों का आपसी प्यार, हिन्दू-मुस्लिम दोस्ती खोया-पाया या धार्मिक अथवा ऐतिहासिक विषय. इनसे हटकर जो विषय लिए जाते थे,  उन विषयों पर फ़िल्में बनाना जोखिम का काम माना जाता था और प्रायः फ़िल्मकार ऐसे जोखिम लेने से बचते थे. जो फिल्मकार ऐसे जोखिम ले लिया करते थे, उनकी फिल्मों को समान्तर सिनेमा या कलात्मक सिनेमा के सांचे में रखकर कुछ चुनिन्दा दर्शकों के लिए देखने को सीमित कर दिया जाता था. इसका नतीजा यह होता था कि बॉक्स ऑफिस या कमाई की दृष्टि से ये फ़िल्में ज्यादातर घाटे का सौदा साबित होती थीं और इन्हें आम जनता के लिए अनुपयोगी घोषित कर देश के एक बड़े तबके से इन्हें वंचित कर दिया जाता था. प्रायः बनते ही उनकी भ्रूण हत्या हो जाया करती थी. यही नहीं ऐसी फिल्मों के निर्देशकों को आर्ट फिल्म डायरेक्टर कहकर उनकी प्रतिभा को एक बड़े दर्शकों तक नहीं पहुँचने दिया जाता था. सातवें-आठवें दशक में मृणाल सेन, गोविन्द निहलानी, ऋत्विक घटक जैसे निर्देशकों को इसकी चहारदीवारी में कैद कर उनकी फिल्मों के दर्शक वर्ग को एक बुद्धिजीवी वर्ग तक सीमित कर दिया गया था. हालाँकि शुरूआत से ऐसा नहीं था, प्रारंभिक दौर का सिनेमा अपने दायित्वबोध से भी जुड़ा था और आम जनता विशेषकर वंचित तबके के सरोकारों से उसका गहरा जुड़ाव हुआ करता था. सन 1936 की अछूत कन्या हो या चेतन आनंद की सन 1946 में आई नीचा नगर हो या राज कपूर, गुरु दत्त, सत्यजित रे, महबूब खान की फ़िल्में हों, इनमें फंतासी से अधिक जनजुड़ाव हुआ करता था. शम्मी कपूर, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, अमिताभ, जितेन्द्र जैसे लार्जर दैन लाइफ किरदार निभाने वाले अभिनेताओं के फिल्म जगत में आने से आर्ट फिल्म और पॉपुलर सिनेमा के बीच एक रेखा खिंच गई.  

नयी सहस्राब्दि ने इस परंपरागत ढांचे को तोड़ा और हिन्दी सिनेमा के पॉपुलर अथवा मेनस्ट्रीम सिनेमा एवं आर्ट सिनेमा के कृत्रिम विभाजन को खत्म करते हुए सिनेमा को सभी प्रकार की संवेदनाओं का एकसम प्रतीक बना दिया.  हालाँकि इसकी आहट नवें दशक में ही दिखने लगी थी, जब परिंदे, मिशन कश्मीर और प्रहार जैसी फ़िल्में आयीं, जिन्होंने आर्ट बनाम मेनस्ट्रीम सिनेमा की कृत्रिम रेखा को कुछ धुंधला करने का काम किया लेकिन इस दिशा में बड़ा स्फोट किया सन 2001 ने. उस समय एक ओर नयी सहस्राब्दि अंगड़ाई लेते हुए अपनी आँखें खोल रहा था तो दूसरी ओर तीन फ़िल्में हिन्दी सिनेमा को बदलने के लिए तैयार थीं. ये थीं- लगान, ग़दर : एक प्रेम कथा और दिल चाहता है. लगान और गदर : एक प्रेम कथा तो एक ही दिन रिलीज़ हुईं और दोनों ने ही भरपूर कमाई की. लगान के माध्यम से आशुतोष गोवारीकर ने पीरियड फिल्मों का हिन्दी सिनेमा में पुनर्पदार्पण सुनिश्चित किया और आम आदमी की सिनेमा में नायक के पद पर फिर से प्रतिष्ठा सुनिश्चित की. इस फिल्म से  वस्तुतः आर्ट सिनेमा और मेनस्ट्रीम सिनेमा की खाईं काफी हद तक पट गई और इतिहास के उन प्रसंगों को भी सिनेमा में जगह मिलने की शुरूआत हुई, जिनका नाम इतिहास भी नहीं लेता. ग़दर : एक प्रेम कथा ने भी कमोबेश यही काम किया लेकिन लगान ने यह काम शान्तिपूर्वक किया तो इस फिल्म ने लाउड होकर किया. इस फिल्म ने इतिहास विशेषकर स्वतंत्रता संग्राम के बाद के भारत और पाकिस्तान के समाज को एक साथ चित्रित करने का काम भी किया. यह और बात है कि लगान की चर्चा प्रायः की जाती है लेकिन गदर : एक प्रेम कथा का कोई नाम नहीं लेता. साल की तीसरी महत्त्वपूर्ण दिल चाहता है थी, जिसने नयी सहस्राब्दि के मेट्रोपोलिटन शहरों के युवाओं के प्रेम, आकाँक्षाओं, सपनों और उड़ानों को पर्दे पर दिखाने की शुरुआत की.


इन फिल्मों के आने के बाद वास्तव में हिन्दी सिनेमा ने अपना चोला बदला और मुन्ना भाई एमबीबीएस, ब्लैक, पा, लगे रहो मुन्ना भाई, इकबाल,  चक दे इंडिया, फैशन, इश्किया, पीपली लाइव, विक्की डोनर, पान सिंह तोमर, गंग ऑफ़ वासेपुर, लंचबॉक्स, आई एम कलाम जैसी फिल्में आयीं और इन्होंने सफलता के नए कीर्तमान भी गढ़े. अब जबकि नयी सहस्राब्दि का दूसरा दशक भी बीतने को है, ऐसे में आशा की जानी चाहिए कि हिन्दी सिनेमा उन विषयों को पर्दे पर लाता रहेगा, जिनकी चर्चा समाज, साहित्य और इतिहास में कम होती है और वे नायक जिन्हें गुमनामी के अँधेरे में रहने को अभिशप्त कर दिया गया है, वे भी अपनी पूर्ण आभा के साथ रजत पट पर अपनी चमक बिखेरेंगे. 

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