हम सबकी आत्मसत्ता का प्रतीक है गणतंत्र दिवस
गणतन्त्र वस्तुतः हम सबकी आत्मसत्ता का प्रतीक है। 15 अगस्त 1947 ने हमें आज़ादी तो दे दी थी, किन्तु उस समय तक न तो हमारे पास अपना कोई संविधान था, न ही हम अपने आपको इस योग्य बना सके थे कि हम खुदमुख्तार बन सकें। यही कारण था कि आजादी के बाद भी लगभग 3 साल तक हमने गवर्नर जनरल के पद को बनाए रखा औऱ अंग्रेज़ो द्वारा नियुक्त लार्ड माउंटबैटन तथा उसके बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को गवर्नर जनरल बनाया। साथ ही डॉ राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा ने भारत का संविधान बनाने का कार्य भी फौरन शुरू कर दिया, जिसकी प्रारूप समिति का अध्यक्ष डॉ बाबा साहब भीमराव रामजी आम्बेडकर को बनाया गया। संविधान 26 नवम्बर सन 1949 को बनकर तैयार हुआ लेकिन इसे 26 जनवरी 1950 से लागू इसलिए किया गया क्योंकि आज़ादी से पहले देश 26 जनवरी को ही अपना स्वतन्त्रता दिवस मनाता था क्योंकि 26 जनवरी सन 1930 को लाहौर में रावी नदी के तट पर पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्रता का उद्घोष किया था।
आज के दिन से हमने अंग्रेज़ों के बनाए संविधान तथा राज्य व्यवस्था को त्यागकर अपनी व्यवस्था स्थापित की लेकिन दुर्भाग्य यह कि हम अंग्रेज़ियत को नहीं त्याग सके। भाषाई स्तर पर, सोच के स्तर पर और राजनैतिक स्तर पर कहीं न कहीं हम उसी अंग्रेज़ी कुटिल सोच के शिकार हैं, जो देश को देश नहीं मानती, अफजल, याक़ूब मेमन जैसों का समर्थन करती है, देर रात में उनके लिए अदालत खुलवाती है, उसके समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चलाती है, देशद्रोह के नारे लगवाती है,देश को तोड़ने की बात करने वाले शरजील जैसों की निंदा का भी साहस नहीं जुटा पाती, सैनिकों के बलिदान का उपहास करती है, जिन्ना को गांधी जी और पटेल आदि के समकक्ष खड़ा करती है, सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल खड़े करती है, राम कृष्ण को काल्पनिक तथा ईसाइयत को वैज्ञानिक बताती है। गणतन्त्र दिवस को मनाना तभी सार्थक होगा जब हम सिर्फ शाब्दिक बधाई देने से ऊपर उठें, देश के प्रति कर्त्तव्यों को अन्तर्मन में महसूस करें, तिरंगे को केवल क्रिकेट मैच और 15 अगस्त या 26 जनवरी के दिन ही लगाने का दिखावा न करें वरन राष्ट्र के एक जिम्मेदार नागरिक बनकर इसे शिखर तक ले जाने में अपनी महती भूमिका का निर्वाह करें, लावण्या और निर्भया की रक्षा कर सकें, होरी को हीरो बना सकें, मातृ भाषा और मातृबोली का सम्मान करना सीख सकें, जातिवाद से ऊपर उठकर राष्ट्रवाद को अंगीकृत कर सकें, वरना मैकाले और डलहौजी के मानस पुत्र हमारे लिये खाईं खोदने को तैयार हैं।
आप सभी इष्ट मित्रों को 73वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
©डॉ पुनीत बिसारिया
अध्यक्ष-हिंदी विभाग एवं पूर्व अध्यक्ष/ निदेशक-शिक्षा संस्थान,
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी
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