मेरी पुस्तक प्राथमिक चिकित्सा और स्वास्थ्य का अंश

 प्राथमिक चिकित्सा का प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक महत्व है किंतु प्रायः इसके लिए जागरूक करने के प्रयास नहीं किए जाते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के स्नातक द्वितीय सेमेस्टर के मूल्य आधारित पाठ्यक्रम में इसे रखा है। यह बेहद ज़रूरी है कि हम विभिन्न आपातकालीन स्थितियों में प्राथमिक चिकित्सा के माध्यम से रोगी की जान को बचा सकें। मैंने डॉ वीरेंद्र सिंह यादव और डॉ यतेंद्र सिंह कुशवाहा के साथ मिलकर यह पुस्तक लिखी है, जिसे प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली ने  बिल्कुल अभी अभी बेहद सुरुचिपूर्ण तथा खूबसूरती से प्रकाशित किया है। यह पाठ्यक्रम के साथ साथ आम आदमी के लिए भी आवश्यक पुस्तक है, जो ऑनलाइन तथा ऑफलाइन उपलब्ध है। लीप्रस्तुत है इस पुस्तक की अनुक्रमणिका और कुछ प्रारंभिक अंश -

अनुक्रम 

इकाई-1

आधारभूत प्राथमिक चिकित्सा

प्राथमिक चिकित्सा का उद्देश्य

प्राथमिक चिकित्सा के सिद्धांत 

आपातकालीन स्थिति से निपटना, पुनर्जीवन (आधारभूत सी.पी.आर) 

सी.पी.आर.देने की प्रक्रिया

रिकवरी या स्वास्थ्य लाभ स्थिति में लाने के उपाय, प्रारंभिक आपादमस्तक मूल्यांकन 

हाथ धोना तथा स्वच्छता

प्राथमिक चिकित्सा किट

प्राथमिक चिकित्सा के प्रकार

प्राथमिक चिकित्सा तकनीक

ड्रेसिंग और बैडेज

पट्टी कैसे बदलते हैं

बैंडेज

बैंडेज लगाने का सही तरीका

आपातकाल में त्वरित निकास प्रविधियाँ 

पहला चरण 

दूसरा चरण 

तीसरा चरण 

आपातकाल में त्वरित निकास प्रविधियाँ (एकमात्र बचाव सदस्य हेतु) 

फायरमैन की भाँति उठाना या ले जाना 

पीठ पर उठाना या ले जाना 

पैक स्ट्रैप कैरी 

शोल्डर ड्रैग या कंधों से खींचकर उठाना 

ब्लैंकेट ड्रैग या कंबल से खींचना 

• ड्रेसिंग और बैंडेज (मरहमपट्टी)

• आपातकाल में त्वरित निकास प्रविधियाँ (एकमात्र बचाव सदस्य हेतु)

• आपातकाल में परिवहन प्रविधियाँ

श्वसन तंत्र से जुड़ी प्राथमिक चिकित्सा

• श्वसन के आधारभूत सिद्धांत

• बिल्कुल साँस न ले पाना, साँस लेने में दिक्कत होना, डूबना, दम घुटना, गला घूँटना और फाँसी पर लटक जाना

• गले के अंदर सूजन होना, धुएँ या गैसों के कारण घुटन होना, दमा या अस्थमा

(घ) हृदय, रक्त तथा रक्त संचार से जुड़ी प्राथमिक चिकित्सा

हृदय तथा रक्त संचार के आधारभूत सिद्धांत 

हृदय के दाईं ओर छाती में बेचैनी होना

छाती के दर्द में प्राथमिक चिकित्सा

मरीज जब होश में हो

मरीज जब बेहोश हो

छाती के दर्द में क्या नहीं करना चाहिए

(च) घाव या जख्म तथा चोट से जुड़ी प्राथमिक चिकित्सा

घाव या जख्म के प्रकार

घाव का प्राथमिक उपचार

छाती की चोट तथा उसकी प्राथमिक चिकित्सा

सिर, छाती तथा पेट की चोटें एवं उनकी प्राथमिक चिकित्सा

सिर की चोट 

खुली चोट 

बंद चोट 

सिर में चोट के लक्षण 

सिर की चोट का प्राथमिक उपचार

पेट की चोट एवं प्राथमिक चिकित्सा

पेट चोट का निवारण

शरीर का कोई अंग कटकर अलग हो जाना

कुचले जाने से लगी चोटें (क्रश इंजरी)

आघात (शॉक)

शॉक की प्राथमिक चिकित्सा

(छ) हड्डियों, जोड़ों तथा मांसपेशियों की चोटों से जुड़ी प्राथमिक चिकित्सा

मानव कंकाल, जोड़ों तथा मांसपेशियों के आधारभूत सिद्धांत

मानव कंकाल 

जोड़ या संधियाँ

मांसपेशियाँ

फ्रैक्चर या अस्थि भंग (हड्डियों की चोट)

हड्डी टूटने पर प्राथमिक चिकित्सा

सदमे का इलाज

इकाई-2

विषपान या जहरखुरानी, डंक मारने या काटने, त्वचा जलने, संवेदी अंगों, तंत्रिका तंत्र तथा बेहोशी, जठरांत्र पथ, आपातकालीन प्रसव से जुड़ी प्राथमिक चिकित्सा और विशिष्ट आपातकालीन परिस्थितियाँ 

 विषपान या जहरखुरानी से जुड़ी प्राथमिक चिकित्सा

उदर अथवा आहारनाल को हानि पहुँचाने वाले विष 

जलन उत्पन्न करनेवाले विष 

तंत्रिका तंत्र को हानि पहुँचाने वाले विष 

निद्रा उत्पन्न करनेवाले विष 

तंबाकू की अधिक मात्रा 

डंक मारने या काटने से जुड़ी प्राथमिक चिकित्सा

मच्छर

पिस्सू 

गुड़मक्खी

घुन 

मकड़ी 

ततैया 

साँप 

बिच्छू

सर्पदंश के समय प्राथमिक उपचार

 (ग) त्वचा जलने से जुड़ी प्राथमिक चिकित्सा

माइनर बर्न 

मेजर बर्न 

बिजली से जलना

हिमदाह

हिमघात

 (घ) संवेदी अंगों से जुड़ी प्राथमिक चिकित्सा

आँख में कुछ चले जाने या चोट लग जाने पर प्राथमिक उपचार

नाक में कोई बाहरी वस्तु चली जाने पर प्राथमिक उपचार

कान में किसी बाहरी वस्तु के चले जाने पर प्राथमिक चिकित्सा

 (च) तंत्रिका तंत्र तथा बेहोशी से जुड़ी प्राथमिक चिकित्सा

मस्तिष्क 

मेरुरज्जु 

तंत्रिकाएँ 

तंत्रिका तंत्र से जुड़ी समस्याओं के समय प्राथमिक चिकित्सा

बेहोशी 

बेहोश होने पर प्राथमिक चिकित्सा

बेहोश व्यक्ति को होश में लाने हेतु प्राथमिक उपाय

अपघात/स्ट्रोक

अपघात/स्ट्रोक के समय प्राथमिक उपचार

मिर्गी के दौरे

मिर्गी के समय प्राथमिक उपचार

(छ) जठरांत्र पथ से संबद्ध प्राथमिक चिकित्सा

अतिसार या डायरिया

भोजन विषाक्तता

(ज) आपातकालीन प्रसव

प्रसव की चरणबद्ध स्थिति

(झ) विशिष्ट आपातकालीन परिस्थितियाँ एवं आपदा प्रबंधन

सड़क तथा यातायात की दुर्घटनाएँ 

इकाई-3

आधारभूत यौन शिक्षा

(क) आधारभूत यौन शिक्षा

विहंगावलोकन, आधारभूत सिद्धांत, पूर्व परीक्षण

मूत्र प्रणाली तथा प्रजनन प्रणाली के आधारभूत सिद्धांत

 पुरुष यौवन-शारीरिक एवं भावनात्मक परिवर्तन

 स्त्री यौवन-शारीरिक एवं भावनात्मक परिवर्तन

(च) स्त्री-पुरुष में समानताएँ और भिन्नताएँ

(छ) सम्भोग, गर्भावस्था तथा प्रसव, सेक्स करने के बाद कंसीव करने का समय

(ज) एल.जी.बी.टी.क्यू. से संबंधित तथ्य, दृष्टिकोण और मिथक 

(झ) जनसंख्या नियंत्रण और गर्भपात

(ट) प्रेमरहित संभोग—उत्पीड़न, यौन शोषण तथा बलात्कार या रेप

(ठ) यौन रोगों के लक्षण तथा यौन रोगों की रोकथाम

 इकाई-4

मानसिक स्वास्थ्य आधारित प्राथमिक चिकित्सा

मानसिक स्वास्थ्य 

 आत्महत्या

 स्वयं को चोट पहुँचाना

(च) आतंकी हमलों तथा दुर्घटनाओं के समय प्राथमिक चि‌कित्सा

(छ) मनोविकृति

ब्रीफ सायकोटिक डिसऑर्डर

अंग संबंधित मनोविकृति

नशीले पदार्थों से संबंधित मनोविकृति

(ज) औषधि अतिमात्रा

(झ) अवसाद

(ट) दुश्चिंता

(ठ) पदार्थ उपयोग विकार या मादक द्रव्य सेवन 

(ड) भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ

इकाई-1

प्राथमिक चिकित्सा और स्वास्थ्य 

 (क) आधारभूत प्राथमिक चिकित्सा (Basic First Aid)

प्राथमिक चिकित्सा का मूलभूत उद्देश्य रोगी को विधिवत चिकित्सीय सुविधा मिलने से पहले तक किया गया वह सामान्य उपचार है, जिसके द्वारा रोगी को आराम पहुंचाया जा सकता है, उसकी हालत बिगड़ने से उसे बचाया जा सकता है और उसको पुनर्जीवन देने हेतु आवश्यक प्रयास किए जा सकते हैं, ताकि आपातकालीन चिकित्सा सुविधा मिलने तक उसकी हालत स्थिर रखी जा सके| सरल शब्दों में कहें तो किसी व्यक्ति को चोट लगने या किसी रोग के होने पर जो तुरंत सहायता उस घायल या रोगी व्यक्ति को दी जाती है, उसे प्राथमिक चिकित्सा कहते हैं। 

प्राथमिक चिकित्सा का प्रमुख उद्देश्य कम-से-कम साधनों में इतनी आवश्यक व्यवस्था करना होता है, जिससे चोटग्रस्त व्यक्ति या रोगी को इलाज कराने की स्थिति तक पहुँचने में लगने वाले समय से पहले तक कम-से-कम नुकसान हो। दूसरे शब्दों में प्राथमिक चिकित्सा चोटग्रस्त व्यक्ति या रोगी हेतु विधिवत चिकित्सा के आने या अस्पताल तक घायल या रोगी को पहुँचाने के पहले दी जाने वाली सहायता या उपचार है, पूर्ण चिकित्सा नहीं। प्राथमिक चिकित्सा का उपचार या काम उस समय समाप्त हो जाता है, जब डॉक्टरी सहायता प्राप्त हो जाती है। प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षित अथवा अप्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा दी जाती है। प्राथमिक चिकित्सा प्रायः मरीज के लिए जीवन-रक्षक सिद्ध होती है।

प्राथमिक चिकित्सा का उद्देश्य

प्राथमिक चिकित्सा का प्रमुख उद्देश्य रोगी या घायल को हरसंभव उपायों से सहायता करना है, जिससे उसे आराम मिल सके, उसका जीवन बचाया जा सके और घाव या चोट बढ़ने न पाए।

प्राथमिक चिकित्सा का दूसरा प्रमुख उद्देश्य घायल व्यक्ति की स्थिति खराब होने एवं घावों को बिगड़ने व बढ़ने से रोकना भी होता है। किसी भी व्यक्ति को प्राथमिक चिकित्सा देने का मतलब यह है कि आप उस व्यक्ति को खतरे से बचा रहे हैं या उसका खतरा कम कर रहे हैं।

प्राथमिक चिकित्सा का तीसरा व अहम उद्देश्य रोगी को ठीक होने में मदद करना होता है। प्राथमिक चिकित्सा में समय की अहम भूमिका होती है। रोगी या घायल को सही समय पर प्राथमिक चिकित्सा मिलना उसके लिए जीवन-रक्षक साबित हो सकती है।

प्राथमिक चिकित्सा के सिद्धांत या स्वर्ण-सूत्र 

प्राथमिक चिकित्सा के प्रमुख सिद्धांत या स्वर्ण-सूत्र निम्नलिखित हैं—

प्राथमिक चिकित्सा सबसे पहले यथाशीघ्र तथा शांति से बिना किसी कोलाहल या भय से की जानी चाहिए।

प्राथमिक चिकित्सा के तहत प्रत्येक प्रकार के रक्त स्राव को तत्काल बंद करना चाहिए।

यदि किसी कारण किसी रोगी की श्वाँस रुक गई हो तो तुरंत उसे ‘कृत्रिम श्वाँस’ देनी चाहिए। इस स्थिति में रोगी के लिए प्रत्येक क्षण अमूल्य होता है, अतः जब तक चिकित्सक न आए, तब तक घायल को मृत नहीं मानना चाहिए।

प्राथमिक चिकित्सा में बहुत अधिक करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। केवल उतना ही कीजिए, जो रोगी के जीवन को बचाने के लिए आवश्यक हो तथा उसकी दशा को अधिक बिगड़ने से बचा सके।

प्राथमिक चिकित्सा कर रहे व्यक्ति को चाहिए कि वह रोगी या घायल एवं उसके आसपास के लोगों को भयहीन करने का प्रयास करे। किसी भी स्तर पर घबराहट को कम करना चाहिए।

आपातकालीन स्थिति से निपटना, पुनर्जीवन (आधारभूत सी.पी.आर)

पुनर्जीवन (आधारभूत हृत्फुफ्फुसीय पुनर्जीवन या आधारभूत सी.पी.आर.) एक आपातकालीन स्थिति में प्रयोग की जाने वाली प्रक्रिया है, जो किसी व्यक्ति की धड़कन या साँस रुक जाने पर प्रयोग की जाती है। इस प्रक्रिया में बेहोश व्यक्ति को साँसें दी जाती हैं, जिससे उसके फेफड़ों को उचित ऑक्सीजन मिलती है और व्यक्ति की साँस वापस आने तक या दिल की धड़कन सामान्य होने तक उसकी छाती को दबाया जाता है, जिससे शरीर में पहले से मौजूद आक्सीजन वाला खून संचारित होता रहता है।

हृदयाघात या हार्ट अटैक, कार्डियक अरेस्ट, डूबना, सांस घुटना एवं करंट लगना जैसे स्थितियों में तुरंत सी.पी.आर.की आवश्यकता होती है। यदि किसी व्यक्ति की साँस या धड़कन रुक गई है तो जल्द-से-जल्द उसे सी.पी.आर. देनी चाहिए, क्योंकि पर्याप्त ऑक्सीजन के बिना शरीर की कोशिकाएँ बहुत जल्द खत्म होने लगती हैं। विशेषकर, मस्तिष्क की कोशिकाएँ कुछ ही मिनटों में खत्म होने लगती हैं, जिससे गंभीर नुकसान या मौत भी हो सकती है, किन्तु सही समय पर सी.पी.आर. देने से कई व्यक्तियों के बचने की संभावना दोगुनी हो सकती है।

 यदि किसी व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी हो रही है तो उसे आपातकालीन सुविधाओं के आने से पहले जो प्राथमिक चिकित्सा दी जाती है, उसे पुनर्जीवन हेतु आधारभूत हृत्फुफ्फुसीय पुनर्जीवन या आधारभूत सी.पी.आर. की संज्ञा दी जाती है| इसके लिए सर्वप्रथम रोगी को पीठ के बल लिटा देना चाहिए और उसके श्वसन तंत्र को खुला रखना सुनिश्चित करना चाहिए| इसके पश्चात भी यदि वह सांस नहीं ले पा रहा है तो उसे आधारभूत हृत्फुफ्फुसीय पुनर्जीवन या आधारभूत सी.पी.आर. देने की प्रक्रिया प्रारंभ करनी चाहिए| इसके लिए सबसे पहले रोगी की छाती को 30 बार जोर से दबाना चाहिए, फिर उसके मुंह पर अपना मुंह ले जाकर उसे अपने मुंह से दो बार सांस देने की प्रक्रिया करनी चाहिए| यह प्रक्रिया तब तक दोहराते रहना चाहिए, जब तक एम्बुलेंस नहीं आ जाती| शिशुओं, बच्चों तथा वयस्कों में आधारभूत हृत्फुफ्फुसीय पुनर्जीवन या आधारभूत सी.पी.आर. देने की प्रक्रिया में आवश्यकतानुसार परिवर्तन हो सकते हैं, अर्थात अवयस्कों की छाती को अपेक्षाकृत कम जोर से दबाया जाना चाहिए और दबाव की संख्या 30 से कम की जानी चाहिए| 

सी.पी.आर. देने से पहले जाँच कर लें कि —

क्या आसपास का वातावरण व्यक्ति के लिए सुरक्षित है।

व्यक्ति होश में है या बेहोश है?

अगर व्यक्ति बेहोश है, तो उसके कंधे को हिलाकर उससे ऊँची आवाज में पूछना चाहिए कि क्या वह ठीक है।

यदि व्यक्ति बेहोश है तो एंबुलेंस के लिए संपर्क करना चाहिए और (डीफिब्रिलेटर) करंट द्वारा दिल की अनियमित धड़कन को सामान्य करने वाला उपकरण मँगाए।

सी.पी.आर.देने की प्रक्रिया

सी.पी.आर. के अंतर्गत व्यक्ति की छाती को दबाना और उसे मुँह से साँस देना होता है। इसलिए बड़ों एवं बच्चों को सी.पी.आर. देने का तरीका अलग-अलग है।

बड़ों को सी.पी.आर. देने का तरीका

व्यक्ति को एक समतल जगह पर पीठ के बल लिटा लें।

व्यक्ति के कंधों के पास घुटनों के बल बैठ जाएँ।

अपने ऊपर के शरीर के वजन का इस्तेमाल करते हुए व्यक्ति की छाती को कम-से-कम 2 इंच और ज्यादा-से-ज्यादा 2.5 इंच तक दबाना और छोड़ना चाहिए| ऐसा एक मिनट में 100 से 120 बार तक करना चाहिए|

घायल व्यक्ति को अपने मुँह से मुँह में रखकर साँस देनी चाहिए| यदि मुँह से साँस देना संभव नहीं है तो नाक में मुँह से साँस देना चाहिए| 

बच्चों के मामले में उनकी छाती को अपेक्षाकृत कम दबाव में हाथों से दबाना चाहिए| 

बच्चों को साँस की प्रक्रिया बड़ों जैसी होती है।

चूंकि सी.पी.आर. एक प्राथमिक उपचार मात्र है, अतः इसके बाद व्यक्ति को जितना जल्दी हो सके, अस्पताल पहुँचाया जाना चाहिए।

रिकवरी या स्वास्थ्य लाभ स्थिति में लाने के उपाय, प्रारंभिक आपादमस्तक मूल्यांकन 

यदि कोई व्यक्ति बेहोश है अथवा साँस ले रहा है, किन्तु कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है तो उसे रिकवरी या स्वास्थ्य लाभ की स्थिति में लाने के उपाय किए जाने की आवश्यकता होती है| इसके लिए आपातकालीन चिकित्सा सुविधा या एम्बुलेंस के आने से पहले सर्वप्रथम उसे रिकवरी स्थिति या स्वास्थ्य लाभ की स्थिति में रखना चाहिए| 

ऐसी परिस्थिति में प्राथमिक चिकित्सा देने से पहले आपको यह देखना चाहिए कि रोगी के श्वसन मार्ग, विशेषकर मुंह में कोई रुकावट या अवरोधक तो नहीं है| यदि ऐसा है तो सबसे पहले उस अवरोधक को उसके मुंह से हटा देना चाहिए| इसके अलावा यदि आसपास कोई खतरे की आशंका है तो उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए| तत्पश्चात यदि रोगी होश में है तो उसे अपना परिचय देना चाहिए और उसे उसके स्वास्थ्य के प्रति आश्वस्त करने का प्रयास करना चाहिए| यदि रोगी होश में नहीं है तो उसकी कॉलर बोन या गले के नीचे की हड्डी को हौले से सहलाना चाहिए और उसकी प्रतिक्रिया की कुछ सेकंड तक प्रतीक्षा करनी चाहिए, यदि रोगी प्रतिक्रिया देता है तो उससे उसकी सहायता की अनुमति प्राप्त करना चाहिए| उससे बात कर आप जान सकते हैं कि उसे क्या हुआ है और जिस समय आप उसका मूल्यांकन कर रहे हैं, उस समय रोगी को हिलने-डुलने नहीं देना चाहिए| इसके बाद यह निर्णय लिया जाना चाहिए कि क्या करना है| 

यदि रोगी बेहोश है तो यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि रोगी सांस ले पा रहा है अथवा नहीं| यदि रोगी सांस ले पाने में असमर्थ है तो उसे आधारभूत हृत्फुफ्फुसीय पुनर्जीवन या आधारभूत सी.पी.आर. देनी चाहिए, ताकि वह पुनः सांस ले सके| रोगी सांस ले पा रहा है अथवा नहीं, यह जानने के लिए सर्वप्रथम रोगी के सिर तथा गर्दन को हल्के से पीछे की ओर घुमाना चाहिए, इससे उसकी जीभ उसके गले से कुछ दूर हो जाएगी और रोगी को सांस लेने में सुविधा होगी| इसके बाद उसका एक हाथ उसके माथे पर रखना चाहिए और दूसरा हाथ उसकी ठुड्डी के नीचे रखना चाहिए और मुंह के अंदर झाँककर देखना चाहिए कि भोजन अथवा किसी अन्य वस्तु का कोई अवरोध तो मुंह के अंदर नहीं है| इसके बाद ठुड्डी को ऊपर उठाकर माथे को हौले से नीचे ले जाना चाहिए और दस सेकंड तक रोगी की सांस लेने की प्रक्रिया को सुनने, देखने और महसूस करने का प्रयास करना चाहिए| अपने कानों को रोगी के मुंह के निकट ले जाकर उसके सांस लेने की प्रक्रिया को सुनने की कोशिश करना चाहिए, छाती के उठने और गिरने की प्रक्रिया से भी सांस लेने का अनुमान लगाया जा सकता है| यदि वह सामान्य रूप से सांस ले रहा है तो उसे आधारभूत हृत्फुफ्फुसीय पुनर्जीवन या आधारभूत सी.पी.आर. की आवश्यकता नहीं है और तब आप तुरंत किसी व्यक्ति को एम्बुलेंस लाने को कह सकते हैं या फोन कर सकते हैं| इसके बाद उसे रिकवरी स्थिति या स्वास्थ्य लाभ की स्थिति में लाने का प्रयास करना चाहिए| यदि उपलब्ध हों तो सबसे पहले प्राथमिक चिकित्सादाता को अपने दोनों हाथों में ग्लब्स पहन लेना चाहिए और तेजी से रोगी के माथे से लेकर पैरों तक का निरीक्षण कर लेना चाहिए कि उसे कहीं कोई चोट तो नहीं लगी है; उसके कंधों, छाती और भुजाओं में कोई विकृति या टूट-फूट तो नहीं है अथवा कहीं से रक्त अथवा कोई द्रव तो नहीं बह रहा है, उसके दोनों पैर सामान्य स्थिति में हैं या नहीं, इसकी भी जांच कर लेनी चाहिए| यह भी देखना चाहिए कि उसके नितंबों अथवा टांगों को कोई नुकसान तो नहीं हुआ है| इसे ही प्रारम्भिक आपादमस्तक मूल्यांकन कहते हैं| 

जब यह जांच पूरी हो जाए और चोट के कोई प्रमाण न मिलें तो रोगी को इस प्रकार रिकवरी स्थिति या स्वास्थ्य लाभ की स्थिति में लाना चाहिए-

सर्वप्रथम रोगी के पास घुटनों के बल बैठ जाना चाहिए|

तत्पश्चात यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रोगी की टांगें सीधी हैं तथा पैर एक साथ हैं| 

अब हौले से रोगी के शरीर को एक हाथ के बल पर रखने हेतु घुमा देना चाहिए|

 अब यह देखना चाहिए कि रोगी को सांस लेने में कोई दिक्कत तो नहीं हो रही है|

अब उसके दोनों पैरों को एक दूसरे के पास ले आना चाहिए, ताकि वे उसके शरीर को सहारा दे सकें और वे उसकी दिशा में ही रहें| 

इसके बाद आपका उद्देश्य रोगी को आरामदायक एवं सुरक्षित रखना है| याद रखिए कि आपको रोगी से निरंतर बात करते रहना है और पूरे समय उस पर नजर रखनी है कि वह सांस ले पा रहा है अथवा नहीं|    

हाथ धोना तथा स्वच्छता

हम प्रतिदिन न जाने कितने लोगों और वस्तुओं के संपर्क में आते हैं| कई व्यक्तियों अथवा वस्तुओं को हम जाने-अनजाने छूते हैं या उनका हमारे हाथों से संपर्क होता है| ऐसे में जिन व्यक्तियों अथवा वस्तुओं से हमारा संपर्क होता है, उनके माध्यम से जीवाणु, कीटाणु, विषाणु और अन्य गंदगी हमारे हाथों में भी लग जाती है, जो हमारे मुख से होते हुए हमारे शरीर में पहुंचकर हमें बीमार बना सकती है| अतः अपने हाथों को बार-बार साबुन से धोना और स्वच्छ रखना अत्यंत आवश्यक है| हाथों को स्वच्छ नहीं रखने पर संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे में संचारित हो जाता है, जबकि सावधानीपूर्वक हाथ धोने से इसकी आशंका कम हो जाती है। हाथ धोने में यांत्रिक एवं रासायनिक दोनों क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं।

© प्रो. पुनीत बिसारिया

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