स्वाधीनता संग्राम की सर्वाधिक जाज्वल्यमान ज्योति वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई, मराठा राजवंश और झाँसी का प्रामाणिक इतिहास है यह ग्रंथ

 मित्रों,

हर्ष का विषय है कि देश के वयोवृद्ध इतिहासकार, शायर, चित्रकार और पत्रकार साहित्य भूषण श्री ओमशंकर खरे 'असर' जी का बहुप्रतीक्षित इतिहास ग्रंथ 'महारानी लक्ष्मीबाई और मराठाकालीन झाँसी' मेरे सम्पादन में अनंग प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित होकर आज से पाठकों के लिए उपलब्ध होने जा रहा है। पुस्तक खरीदने के इच्छुक पाठक मित्रगण अनंग प्रकाशन, दिल्ली से इस सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मुझे प्रसन्नता है कि आदरणीय असर जी के जीवन काल में क्यों मुझे याद बहुत आता है चेहरा कोई और आबशार ग़ज़ल संग्रहों के पश्चात उनका तीसरा ग्रंथ मेरे सम्पादन में आप सबके बीच आ रहा है। पुस्तक को समझने हेतु मेरे द्वारा पुस्तक में लिखी गई भूमिका आप सबके समक्ष प्रस्तुत है, जिससे आप सब इस पुस्तक के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं -

स्वाधीनता संग्राम की सर्वाधिक जाज्वल्यमान ज्योति वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई, मराठा राजवंश और झाँसी का प्रामाणिक इतिहास है यह ग्रंथ

झाँसी सन 1857 के स्वाधीनता संग्राम का प्रमुख केंद्र रहा है| झाँसी की शौर्यमूर्ति मराठा महारानी लक्ष्मीबाई ने  अप्रतिम वीरत्व और मातृभूमि की बलिवेदी पर अपने प्राणोत्सर्ग से भारत ही नहीं, वरन विश्व की नारी जाति के लिए गर्वोन्नत भाल करने का सुयोग उपलब्ध कराया है| वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की वीरता, राष्ट्रभक्ति और निर्भीकता के कायल उनके विरोधी, अर्थात अंग्रेज भी थे, किन्तु झाँसी में मराठा साम्राज्य किस प्रकार अस्तित्व में आया, झाँसी राज्य के जिस नेवालकर राजवंश में महारानी लक्ष्मीबाई का विवाह हुआ था, उसका क्या इतिहास रहा है, मराठों और अहमद शाह अब्दाली के बीच सन 1761 में हुए पानीपत के तीसरे युद्ध में झाँसी की क्या भूमिका थी और किस प्रकार सन 1757 से पानीपत के युद्ध होने अर्थात सन 1761 तक झाँसी का सूबेदार नारोशंकर दिल्ली का राज्यपाल और लाल किले का किलेदार बनकर अप्रत्यक्षतः दिल्ली पर राज कर रहा था, इसका विवरण प्रायः इतिहास में प्राप्त नहीं होता है| इसके अतिरिक्त किस प्रकार मराठों की सूबेदारी से मुक्ति प्राप्त कर झाँसी में स्वतंत्र नेवालकर वंश के शासन की शुरूआत होती है, राजा गंगाधर राव के पूर्व वंशज राजाओं की शासन पद्धति कैसी थी, झाँसी ने अपना स्वर्ण काल कब देखा, झाँसी राज्य में सखूबाई का क्या योगदान था, महाराज गंगाधर राव का अब तक का वंश वृक्ष क्या है, महारानी लक्ष्मीबाई के पिता और उनके दत्तक पुत्र आनंद राव उर्फ दामोदर राव किस वंश परंपरा से आते थे और उनका महाराज गंगाधर राव से क्या रिश्ता था, महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म वर्ष क्या है, उनके पिता मोरेश्वर तांबे उर्फ मोरोपंत की क्या पृष्ठभूमि थी, स्वतंत्रता संग्राम में उनकी क्या भूमिका थी और उन्हें कब, कैसे पकड़कर कहाँ फाँसी दी गई, महारानी लक्ष्मीबाई के बाद उनके पुत्र दामोदर राव का क्या हुआ, गद्दार दुल्हाजू और उसके भाई का क्या इतिहास रहा है, वर्तमान समय में महारानी लक्ष्मीबाई और मोरोपंत के वंशज कहाँ हैं, आदि अनेक ऐसे प्रश्न हैं, जो इतिहासकारों को लगातार मथते रहते हैं| 

देश के वयोवृद्ध 93 वर्षीय इतिहासकार, गज़लकार, लेखक और चित्रकार ओमशंकर खरे ‘असर’ ने इन प्रश्नों पर गहन शोध किया है तथा अनेक वर्षों की शोध के पश्चात इन प्रश्नों के उत्तर खोज निकाले हैं| इससे पूर्व वे अपने वृहतकाय ग्रंथ ‘झाँसी : क्रांति की काशी’ के माध्यम से इतिहास के अनेक अछूते पहलुओं को उद्घाटित कर चुके हैं|      

 ‘महारानी लक्ष्मीबाई और मराठाकालीन झाँसी’ ग्रंथ उनकी लगभग 50 वर्षों की साधन का सुफल है| इस ग्रंथ के माध्यम से उन्होंने झाँसी पर मराठों के आधिपत्य की शुरूआत से लेकर उनके पतन तक के दृश्य पुष्ट प्रमाणों की सहायता से कुछ इस प्रकार अंकित किए हैं कि झाँसी का समूचा इतिहास हमारे सामने साक्षात खड़ा होकर अपने बारे में बताने लगता है| यह ग्रंथ पिछले एक दशक से प्रकाशन की बाट जोह रहा था| विगत वर्ष आदरणीय असर जी ने मुझसे इस ग्रंथ के विषय में चर्चा की और निवेदन किया कि मैं इसमें समयानुरूप आवश्यक संशोधन-परिवर्धन करते हुए इसके संपादक का दायित्व अपने कंधों पर लेकर इसके प्रकाशन का मार्ग प्रशस्त करूँ, उस समय मैंने उनसे निवेदन किया कि वे इसकी पांडुलिपि उपलब्ध कराएँ, ताकि मैं उसे पढ़ सकूँ| मैं इससे पूर्व उनके दो ग़ज़ल संग्रहों ‘क्यों मुझे याद बहुत आता है चेहरा कोई’ और ‘आबशार’ का वर्ष 2022 में सम्पादन कर चुका था| असर जी ने तत्परता दिखाते हुए तुरंत इस ग्रंथ की पांडुलिपि मुझे पढ़ने के लिए दे दी| 

मैं जब यह ग्रंथ पढ़ रहा था, तभी मुझे लगा कि इतिहास के अनेक अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर यह पुस्तक आसानी से दे सकती है और पूना में पेशवाई की शुरूआत से लेकर, पानीपत के तीसरे युद्ध से होते हुए सन 1857 के स्वाधीनता समर से होते हुए झाँसी के राजवंश की समस्त जानकारी मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास के विद्यार्थियों, शिक्षकों, शोधार्थियों, प्रबुद्ध पाठकों और इतिहासविदों को आसानी से दे सकती है| इस पुस्तक का साहित्यिक और सिनेमाई महत्त्व भी है क्योंकि इस पुस्तक में ऐसी अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का ब्यौरा दिया गया है, जिनसे कोई कवि-लेखक कविता या कथा लेखन कर उस युग को प्रतिबिंबित कर सकता है| इस पुस्तक के वर्णनों में वह खूबी है, जिसकी सहायता से कोई फिल्मकार बड़ी सरलता से सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम और मराठों के गौरवशाली इतिहास तथा झाँसी के पल-पल बदलते ऐतिहासिक घटनाक्रमों को ध्यान में रखकर फिल्म, टीवी या ओटीटी कार्यक्रम बना सकता है| 

मुझे यह कहने में तनिक संकोच का अनुभव हो रहा है कि मैंने आदरणीय ओमशंकर खरे ‘असर’ जी की इस पुस्तक का सम्पादन करते हुए इसकी भाषा-शैली में कतिपय बदलाव करने की धृष्टता की है, किन्तु इसके साथ ही मैं यह अवश्य पूर्ण विश्वास के साथ कहना चाहूँगा कि मैंने पुस्तक के भाव और भावना से रंच मात्र भी छेड़छाड़ नहीं की है| हाँ, इतना अवश्य करने का प्रयास किया है कि दुरूह और अप्रचलित अथवा अपेक्षाकृत अल्पप्रचलित शब्दों के स्थान पर सरल, सहज और बोधगम्य शब्दों का समावेश किया जाए और कुछ वाक्यों की संरचना में आवश्यकतानुसार तदनुरूप परिवर्तन किए जाएँ, ताकि आज के युग के पाठकों को इसे समझने में आसानी हो और आदरणीय असर जी का यह सारस्वत अनुष्ठान आम जन में पर्याप्त लोकप्रियता हासिल करने में सफल हो सके| 

अब दो शब्द प्रकाशक महोदय के विषय में न कहना अनुचित होगा| अनंग प्रकाशन, दिल्ली के स्वत्वाधिकारी गजराज सिंह जी और उनके सुयोग्य सुपुत्र सत्यभान सिंह जी मेरे विशेष आत्मीय रहे हैं और उन्होंने मेरी अनेक पुस्तकों का प्रकाशन कर मुझे पाठकों की दुनिया में असीम स्नेह का भाजन बनने में सहायता की है| जब मैंने उनसे इस पुस्तक के विषय में चर्चा की तो वे तुरंत इसका प्रकाशन करने हेतु तैयार हो गए और अत्यंत शीघ्रता से इसका टंकण करवाकर उन्होंने इसे मेरे पास भेज दिया, किन्तु समयाभाव के कारण मुझे ही इसे अंतिम रूप देने में काफी समय लग गया| मेरे लिए हर्ष और संतोष का विषय है कि अब यह पुस्तक प्रकाशित होकर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हो रही है, जिससे निस्संदेह हिंदी का बड़ा और देश-विदेश में विस्तीर्ण पाठक वर्ग लाभान्वित होगा| 

 ‘महारानी लक्ष्मीबाई और मराठाकालीन झाँसी’ पुस्तक का पाठक वर्ग में यथेष्ट सत्कार और समुचित सम्मान होगा, इसी कामना के साथ यह पुष्प आप समस्त इष्ट की सेवार्थ समर्पित है| 

                                             प्रो. पुनीत बिसारिया

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