नेट न्यूट्रलिटी आज की ज़रूरत है।

आपने सुना ही होगा कि कुछ साल पहले अमरीकी सरकार ने एकाधिकारवादी माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी पर भारी जुर्माना लगाया था क्योंकि इस कम्पनी ने अपने सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के दौरान से व्यापार जगत की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा नहीं होने दी और सारी दुनिया को इस बात के लिए मजबूर किया था कि वह केवल उन्हीं के बनाए और विकसित किये गए सॉफ्टवेयर खरीदे. इससे लिनक्स जैसी कम्पनियों को भारी घाटा हो रहा था और दुनिया को भी कोई अन्य विकल्प मौजूद न होने के कारण माइक्रोसॉफ्ट के ही उत्पाद उनकी मनमानी कीमतों पर खरीदने को विवश होना पड़ रहा था. आज से सौ डेढ़ सौ बरस दूर का एक दूसरा उदाहरण आपके सामने रखते हैं. उस समय भारत में चाय की शुरूआत लोगों को मुफ्त चाय देने से हुई और आज भारत का शायद ही कोई ऐसा नागरिक होगा, जिसकी सुबह-सुबह की चेतना चाय पिए बगैर जाग्रत हो जाती हो. अब नेट न्यूट्रलिटी या नेट निरपेक्षता से जुड़े विवाद पर आते हैं. विवाद की शुरूआत एयरटेल, रिलायंस और फ़ेसबुक के कुछ विशेष किस्म के प्लान आने से हुई. एयरटेल ने एयरटेल जीरो नाम से एक विशेष सेवा शुरू की है जिसके तहत एयरटेल के उपभोक्ता को कुछ विशेष कम्पनियों की इन्टरनेट सेवाएँ मुफ्त में प्राप्त होंगी. जो कम्पनियाँ एयरटेल को कुछ पैसे देकर उससे व्यापारिक तौर पर जुड़ेंगी, उन कम्पनियों के एप्प के माध्यम से उपभोक्ता मुफ्त में उनकी सेवाएँ प्राप्त कर सकेंगे. इसी से मिलती जुलती सेवा रिलायंस और फेसबुक ने मिलकर शुरू की है, जिसमे रिलायंस के सिम धारक फेसबुक के प्लेटफ़ॉर्म इन्टरनेट डॉट ओआरजी के माध्यम से कुछ ख़ास कम्पनियों की सेवाएँ मुफ्त में हासिल कर सकेंगे. फ्लिपकार्ट ने एयरटेल के इस ऑफर को ठुकरा दिया और सबके लिए नेट निरपेक्षता की वकालत की. दूसरी ओर रिलायंस के प्रस्ताव से अभी फ़िलहाल फेसबुक, नोकिया, सैमसंग, एरिक्सन, ओपेरा, क्वालकॉम और मीडियाटेक कम्पनियाँ जुड़ी हैं. एकबारगी देखने और सुनने में यह बात बड़ी अच्छी लगती है कि अगर दो कम्पनियाँ मुफ्त में इन्टरनेट सेवाएँ दे रही हैं तो इसमें हर्ज ही क्या है लेकिन यदि हम इसके दूरगामी प्रभावों की चर्चा करें तो पता चलता है कि ये हासिल करने के बाद वास्तव में हम क्या खोने जा रहे हैं. 
दुनिया में मानवता की सबसे बड़ी ज़रूरत है, समान मानवाधिकार होना, ऐसे ही इन्टरनेट की दुनिया में भी ज़रूरी है कि हमें बिना भेदभाव के सारी सेवाएँ एक ही नियम के अंतर्गत प्राप्त हों लेकिन इन्टरनेट पर मोबाइल सेवा प्रदाता कम्पनियाँ इस मूलभूत सिद्धांत को भूलकर चंद कम्पनियों को फायदा देने की फिराक में हैं और हमारे लोकतान्त्रिक अधिकारों तथा व्यापार के लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने पर तुली हुई हैं. अगर इन्हें ऐसा करते रहने की छूट दे दी गई तो इसका नतीजा क्या होगा? इसका नतीजा यह होगा कि ये जिन सेवाओं के बदले हमसे पैसा नहीं ले रही हैं, बल्कि उन व्यापारियों से वसूल रही हैं, वे व्यापारी मनमानी करेंगे और हम भी इन्हीं कम्पनियों के झांसे में आकर इनकी अन्य सेवाओं से लुटेंगे. ये कम्पनियाँ अपने हितैषी नेट प्रदाताओं की सेवाओं की नेट स्पीड तेज़ रखेंगी और यदि हम कोई दूसरी सेवा इस्तेमाल करेंगे तो वहां की स्पीड में भी हेरफेर करेंगी, जिससे हम परेशान होकर इनकी सुझाई मुफ्त सेवाओं के ही जाल में फंसे रहें. अब सवाल ये उठता है कि आखिरकार ये कम्पनियाँ ऐसा क्यों कर रही हैं तो इसका जवाब यह है कि अभी भारत की लगभग 125 करोड़ की आबादी में से सिर्फ 25 करोड़ लोग ही इन्टरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं और इनमें भी 82 प्रतिशत लोग स्मार्ट फोन के माध्यम से मोबाइल सेवा प्रदाता कम्पनियों की नेट सेवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं. मोबाइल पोर्टेबिलिटी के आ जाने से उपभोक्ता ठीक मोबाइल सेवा न दे पाने वाली कम्पनी की जगह दूसरी कम्पनी की सेवाएँ लेने लगता है, यह लालच देने से उपभोक्ता ऐसा नहीं कर सकेगा और मुफ्त नेट के लालच में इनकी ख़राब सेवाओं को भी झेलता रहेगा. शेष सौ करोड़ भारतीय जो अभी नेट का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे है, उन्हें भी इससे ललचाया जा सकेगा. फेसबुक को इससे यह फायदा होगा कि वह अपने प्लेटफार्म के माध्यम से जिन कम्पनियों को सेवाएँ देगा, वे कम्पनियाँ बदले में उसे पैसे देंगी लेकिन देश या सरकार को इससे कुछ नहीं मिलेगा, और तो और उपभोक्ता को भी इससे कुछ फायदा होने वाला नहीं है क्योंकि क्योंकि वे मुफ्त के लालच में आकर उससे कहीं अधिक पैसे उनकी अन्य मूल्यवर्धित सेवाओं के लिए इन कम्पनियों को दे देंगे. 
असल में समानता का सिद्धांत जितना वास्तविक दुनिया में ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी आभासी दुनिया के लिए भी है। इस दुनिया में भी सभी को समान अवसर मिलने चाहिए। मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि कई मोबाइल कम्पनियों ने ऑफर दिए हैं कि उनकी कम्पनी का मोबाइल खरीदने पर एक विशेष कम्पनी का नेट डाटा मुफ़्त दिया जाएगा या इतने गाने मुफ़्त डाउनलोड किये जा सकेंगे यह भी नेट निरपेक्षता के सिद्धांत के विरुद्ध है और दूसरी बात यह कि सभी कम्पनियों के प्लान एक सामान होने चाहिए ताकि आकर्षक प्लान की आड़ में आम उपभोक्ताओं का शोषण न हो सके। इसके अलावा जितने जीबी का प्लान देने का वायदा इन कम्पनियों द्वारा किया जाता है उतना मापने या जानने की कोई पुख्ता व्यवस्था न होने के कारण यह पता ही नहीं चलता कि इतनी जल्दी प्लान कैसे खत्म हो गया और दूसरी बड़ी बात यह कि समय की सीमा के साथ भी हेरफेर की जाती है। अब प्लान के पैसे पूर्ववत रखकर वैलिडिटी की सीमा घटा दी जाती है जिससे उपभोक्ता की जेब बिना बताए काट दी जाती है।
अब इन्टरनेट से जुड़ी दूसरी बड़ी समस्या प्राइवेसी पर आते हैं. अगर आपने कभी कोई एप्प इंस्टाल किया होगा तो आपको पता होगा कि जैसे ही आप कोई एप्प डाउनलोड करने का प्रयास करते हैं, वैसे ही आपसे इस बात की अनुमति मांगी जाती है कि आपके सभी कॉन्टेक्ट्स, चित्र, ऑडियो-विडियो, फाइल, कॉल सूचना,कनेक्शन की सूचना वह प्राप्त कर ले. ये सारी सूचनाएँ हमारी व्यक्तिगत होती हैं लेकिन सेवादाता हमसे इन सेवाओं के बदले ये सब हासिल करके इनका क्या करता है, इसका हमें कभी भी पता नहीं चलता और हम आंख मूंदकर एप्प हासिल करने की जल्दी में उन्हें इसकी अनुमति दे देते हैं. .इन सूचनाओं का भी महत्त्व होता है क्योंकि इन्हीं के माध्यम से हम पर फेक कॉल्स, स्पैम, फिशिंग आदि के हमले होते हैं और हम बार-बार ठगे जाते हैं. भारत सरकार ने ट्राई की वेबसाइट पर इस सम्बन्ध में आम जनता से राय माँगी है. अभी तक दो लाख से अधिक लोगों ने इन्टरनेट की निरपेक्षता के पक्ष में अपने मेल ट्राई को भेजे हैं. भारत सरकार ने भी जनवरी 2015 में छः सदस्यों की एक समिति गठित की है, जिसकी सिफारिशें अगले महीने आएँगी. इन दोनों के आधार पर सरकार अपनी नीति लाएगी. आज ज़रूरत इस बात की है कि इन्टरनेट और मोबाइल सेवाओं के बारे में सरकार की स्पष्ट नीति हो क्योंकि स्पष्ट नीति और सिद्धांत के अभाव में उपभोक्ता इन कम्पनियों के आकर्षक औइर लुभावने वायदों के लालच में पड़कर लुट जाता है. हमें नेट निरपेक्षता के साथ-साथ नेट प्राइवेसी या नेट निजता के अधिकार पर भी अपनी आवाज़ बुलंद करनी होगी वर्ना हम इसी तरह ठगे जाते रहेंगे. 

Comments

Popular posts from this blog

'कलाम को सलाम' कविता संग्रह में मेरे द्वारा लिखित दो शब्द

कौन कहे? यह प्रेम हृदय की बहुत बड़ी उलझन है

स्वतंत्रता दिवस की 70वीं वर्षगांठ