हिन्दू धर्म और विवाह
हिन्दू धर्म में विवाह एक बहुत ही पवित्र संस्कार माना गया है लेकिन बीते कुछ सालों में इस सामाजिक व्यवस्था में दिनों दिन गिरावट आती जा रही है। भव्यता का भोंडा प्रदर्शन, लड़की पक्ष पर खर्चे का बेतहाशा बोझ और लड़के पक्ष का मिथ्याभिमान इस पर भारी पड़ने लगा है। लड़के की शादी में जाने वाला हरेक बाराती अपने आपको किसी शहंशाह से कम नहीं समझता और येन केन प्रकारेण लड़की पक्ष के लोगों का अपमान और तिरस्कार करके आनंदित होता है मानो लड़की पक्ष का होना दुनिया का सबसे बड़ा गुनाह हो। लड़के का पिता या भाई ही नहीं बल्कि उसकी माँ और बहनें भी ऐसे अकड़कर चलते हैं मानो लड़का पक्ष का होना कोई बहुत बड़ी उपलब्धि हो। सवर्णों और पिछड़े वर्ग के हिन्दू समाज में यह दुर्गुण तेज़ी से पैर पसार रहा है। इसके अलावा हथियारों का भोंडा प्रदर्शन, तड़क भड़क, बेतहाशा सजावट में बिजली की गैर ज़रूरी खपत, अनगिनत भोज्य पदार्थ और नोटों की बारिश से इसे तथाकथित आलीशान बनाया जाता है। इसके बाद भी लड़की का पिता हाथ जोड़े खड़ा रहता है और बारातियों पर चढ़े अंगूर की बेटी के खुमार का खामियाजा भुगतता रहता है। क्या कोई हिन्दू धर्मगुरू इन दुर्गुणों को दूर करने की भी पहल शुरू करेगा?
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